झारखंड में इंडिया ब्लॉक का गठबंधन: झामुमो, कांग्रेस और राजद की दोस्ती क्या जनता के साथ अन्याय?
झारखंड में झामुमो, कांग्रेस और राजद का गठबंधन सवालों के घेरे में। क्या यह राजनीतिक गठजोड़ जनता के साथ अन्याय है? चुनावी मैदान में इसका जवाब मिलेगा।
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 की सरगर्मी तेज हो गई है, और इंडिया ब्लॉक में सीटों के बंटवारे का ऐलान भी हो चुका है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने 41 सीटों पर, कांग्रेस ने 33 सीटों पर, और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने 7 सीटों पर अपना दावा ठोंक दिया है। लेकिन इस गठबंधन पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। क्या यह राजनीतिक समर्पण जनता के हितों के साथ खिलवाड़ नहीं है?
झारखंड की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए यह सवाल और भी अहम हो जाता है। यह मतदाता भूल नहीं सकते कि झारखंड कभी बिहार का हिस्सा था, और जब झारखंड अलग हुआ था, उस वक्त बिहार में राजद की सरकार थी। उस समय 'जंगलराज' की चर्चा जोरों पर थी, और बिहार में अराजकता चरम पर थी। झामुमो और अन्य दलों ने उस वक्त राजद की सत्ता के खिलाफ आवाज उठाकर झारखंड को अलग राज्य बनाया था। झारखंड का गठन उन लोगों की मेहनत और संघर्ष का नतीजा था, जिन्होंने राजद की नीतियों का विरोध किया था।
लेकिन समय के साथ राजनीति ने करवट बदली। अब वही झामुमो, जिसने कभी राजद से अलग होकर झारखंड का गठन करवाया था, आज उसी राजद के साथ गठबंधन में है। यह सवाल उठता है कि क्या यह गठबंधन राजनीति के दबाव में किया गया है, या जनता की भलाई के लिए? क्या यह गठजोड़ जनता के साथ धोखा नहीं है?
राजनीति के जानकारों का कहना है कि यह गठबंधन वोटों की राजनीति और चुनावी समीकरणों का परिणाम है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे राज्य की जनता को फायदा होगा, या फिर यह सिर्फ सत्ता में बने रहने का खेल है? झारखंड की जनता, जो अपने राज्य के संघर्ष को कभी नहीं भूल सकती, इस गठबंधन को कैसे देखेगी?
झामुमो और राजद का साथ आना कई मतदाताओं के लिए चौंकाने वाला है। जो दल कभी एक-दूसरे के विरोध में खड़े थे, आज सत्ता के लिए साथ आ गए हैं। लेकिन चुनावी नतीजे ही तय करेंगे कि जनता इस गठबंधन को कैसे देखती है। क्या वे इस गठजोड़ को स्वीकार करेंगे या फिर इसे सिरे से नकार देंगे?
झारखंड की राजनीति में इस बार का चुनाव कई सवाल खड़े कर रहा है। जनता के मन में यह सवाल जरूर उठेगा कि जब राजद का विरोध कर झारखंड बना था, तो आज झामुमो और राजद का साथ आना क्या उनके संघर्षों के साथ न्याय है?
जवाब तो चुनावी नतीजों के बाद ही मिलेगा, लेकिन इतना तय है कि इस बार का चुनाव सिर्फ राजनीतिक गठबंधनों का नहीं, बल्कि जनता के भरोसे और उनकी अपेक्षाओं का होगा। क्या झारखंड की जनता इस बार के चुनाव में एक नई दिशा चुनेगी, या फिर गठबंधनों के पुराने जाल में फंसेगी?
चुनाव में आपकी भागीदारी अहम होगी। हो जाईए तैयार, देने को मताधिकार!
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