ISRO Spadex Docking Mission : भारत ने अंतरिक्ष में Docking की बड़ी उपलब्धि हासिल की!
ISRO ने SpaDeX मिशन के तहत पहली बार अंतरिक्ष में Docking करके भारत को चौथा ऐसा देश बना दिया है। जानें यह तकनीक क्यों है खास और कैसे बदल सकती है भारत का अंतरिक्ष भविष्य।
ISRO का SpaDeX मिशन: अंतरिक्ष में Docking की ऐतिहासिक उपलब्धि!
भारत ने 16 जनवरी 2025 को अंतरिक्ष की दुनिया में एक और ऐतिहासिक कदम रखा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने SpaDeX (Space Docking Experiment) मिशन के तहत अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को Dock करने में सफलता हासिल की। इस उपलब्धि ने भारत को अमेरिका, रूस और चीन के बाद इस तकनीक में महारत हासिल करने वाला चौथा देश बना दिया। यह केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के भविष्य को नई दिशा देने वाला एक महत्वपूर्ण कदम है।
Docking वह प्रक्रिया है जिसमें दो तेज गति से चलने वाले अंतरिक्ष यानों को एक ही कक्षा में लाकर आपस में जोड़ा जाता है। यह तकनीक न केवल अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिए आवश्यक है, बल्कि बड़े और जटिल मिशनों के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
Docking की जरूरत क्यों है?
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भारी अंतरिक्ष यानों के लिए: कुछ मिशनों में इतने भारी उपकरण और यान होते हैं कि एक ही लॉन्च में उन्हें अंतरिक्ष में ले जाना संभव नहीं होता। Docking के जरिए इन्हें अलग-अलग लॉन्च करके अंतरिक्ष में जोड़ा जाता है।
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अंतरिक्ष स्टेशन: Docking का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग अंतरिक्ष स्टेशन बनाने और उसे बनाए रखने में होता है। जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में Docking का उपयोग नियमित रूप से किया जाता है।
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चंद्रमा और मंगल मिशन: चंद्रयान-4 जैसे मिशनों में Docking का उपयोग चंद्रमा से सैंपल वापस लाने के लिए किया जाएगा।
ISRO ने SpaDeX मिशन के तहत दो छोटे उपग्रहों (SDX01 और SDX02) का उपयोग किया।
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Chaser और Target उपग्रह: SDX01 को "Chaser" और SDX02 को "Target" नाम दिया गया। इन दोनों को क्रमशः 220 किलो के उपग्रहों के रूप में डिजाइन किया गया।
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Docking प्रक्रिया: Chaser उपग्रह को Target उपग्रह के करीब लाया गया। इसे पहले 5 किमी, फिर 1.5 किमी, 500 मीटर, 225 मीटर और अंत में 3 मीटर की दूरी तक लाया गया।
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सटीक Docking: अंत में, दोनों उपग्रहों को आपस में जोड़ा गया। यह Docking पूरी तरह से भारतीय तकनीक का उपयोग करके किया गया।
Docking के बाद क्या हुआ?
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ISRO ने दोनों उपग्रहों को एक "कंपोजिट ऑब्जेक्ट" के रूप में कमांड देना शुरू किया।
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उपग्रहों के बीच ऊर्जा साझा करने की प्रक्रिया भी प्रदर्शित की गई।
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इसके बाद, "Undocking" का प्रदर्शन किया गया, जिसमें दोनों उपग्रहों को अलग किया गया।
यह मिशन पहली बार में सफल नहीं हुआ। 7 जनवरी 2025 को Docking का प्रयास किया गया था, लेकिन तकनीकी खामियों के कारण इसे स्थगित करना पड़ा। इसके बाद, 9 जनवरी को फिर से प्रयास किया गया, लेकिन उपग्रहों के बीच दूरी अधिक हो गई।
अंत में सफलता कैसे मिली?
12 जनवरी 2025 को ISRO ने उपग्रहों को सही स्थिति में लाने के लिए कई मैन्युवर किए। इस बार उपग्रहों को सटीकता से Dock किया गया, और भारत ने अंतरिक्ष में एक और इतिहास रच दिया।
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भारतीय Docking सिस्टम: ISRO ने इस मिशन में पूरी तरह से स्वदेशी Docking सिस्टम का उपयोग किया। यह प्रणाली अन्य अंतरराष्ट्रीय Docking सिस्टम्स से कम जटिल और अधिक कुशल है।
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नई सेंसर तकनीक: Laser Range Finder, Rendezvous Sensor, और Proximity & Docking Sensor का उपयोग किया गया।
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कम ऊर्जा खपत: इस Docking प्रणाली में केवल दो मोटर्स का उपयोग किया गया, जबकि अन्य Docking सिस्टम्स में 24 मोटर्स का उपयोग होता है।
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नेविगेशन प्रणाली: एक नई प्रोसेसर प्रणाली का उपयोग किया गया, जो उपग्रहों की सटीक स्थिति और गति मापने में सक्षम है।
ISRO का यह मिशन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए कई मायनों में मील का पत्थर है।
भविष्य के अंतरिक्ष मिशन:
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भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन: भारत 2035 तक एक अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की योजना बना रहा है। इस स्टेशन को अंतरिक्ष में Docking के माध्यम से अलग-अलग मॉड्यूल्स जोड़कर बनाया जाएगा।
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चंद्रयान-4: इस मिशन में Docking का उपयोग चंद्रमा से सैंपल लाने के लिए किया जाएगा।
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मानव मिशन: 2040 तक भारत मानव मिशन को चंद्रमा पर भेजने की योजना बना रहा है। इसमें भी Docking क्षमता का उपयोग होगा।
अन्य तकनीकी लाभ:
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Docking क्षमता भारत को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष सहयोग में एक मजबूत स्थिति प्रदान करेगी।
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यह तकनीक भारत को भारी और जटिल मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम देने में सक्षम बनाएगी।
भारत से पहले केवल तीन देशों ने यह क्षमता हासिल की है:
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अमेरिका: 1966 में NASA के Gemini VIII मिशन ने पहली बार Docking का प्रदर्शन किया।
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रूस: 1967 में सोवियत संघ ने Kosmos 186 और Kosmos 188 उपग्रहों के माध्यम से Docking की।
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चीन: 2011 में चीन ने Shenzhou-8 और Tiangong-1 स्पेस लैब के बीच Docking का प्रदर्शन किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ISRO की इस उपलब्धि को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए "नए युग की शुरुआत" करार दिया।
Congratulations to our scientists at @isro and the entire space fraternity for the successful demonstration of space docking of satellites. It is a significant stepping stone for India’s ambitious space missions in the years to come. — Narendra Modi (@narendramodi) January 16, 2025
केंद्रीय विज्ञान मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, "SpaDeX ने असंभव को संभव कर दिखाया है। यह पूरी तरह से स्वदेशी Docking प्रणाली पर आधारित है।"
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