Bokaro Protest: रोजगार मांग रहे युवक की मौत के बाद मचा बवाल, 25 लाख मुआवजा और नौकरी का ऐलान!
बोकारो स्टील प्लांट के बाहर रोजगार की मांग को लेकर प्रदर्शन के दौरान एक युवक की मौत के बाद हड़कंप मच गया। जिला प्रशासन ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई और बीएसएल प्रबंधन ने मुआवजा व नौकरी का ऐलान किया। जानिए पूरी खबर।

Bokaro में शुक्रवार को उस समय स्थिति तनावपूर्ण हो गई जब Bokaro Steel Plant के गेट के बाहर चल रहे प्रदर्शन के दौरान एक युवक की मौत हो गई। यह प्रदर्शन बीएसएल विस्थापित अप्रेंटिस संघ के बैनर तले रोजगार की मांग को लेकर किया जा रहा था। घटना के बाद से जिला प्रशासन और बीएसएल प्रबंधन दोनों एक्शन मोड में आ गए हैं।
कब और क्यों शुरू हुआ प्रदर्शन?
बोकारो में पिछले कुछ दिनों से विस्थापित अप्रेंटिस संघ के सदस्य प्लांट के बाहर धरने पर बैठे थे। इनका कहना था कि जब से बीएसएल ने उनके गांवों को विस्थापित किया है, तब से रोजगार का वादा अधूरा है। इसी मांग को लेकर गुरुवार से गेट पर प्रदर्शन जारी था।
लाठीचार्ज और मौत की गूंज
शुक्रवार को प्रदर्शन तेज हुआ, तो CISF जवानों ने प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए बल प्रयोग किया। इसी दौरान भीड़ को काबू में करने के प्रयास में एक 26 वर्षीय युवक की मौत हो गई। इस घटना से पूरे इलाके में आक्रोश फैल गया और माहौल तनावपूर्ण हो गया।
जिला प्रशासन की कार्रवाई
बोकारो की उपायुक्त जाधव विजया नारायण राव ने तुरंत प्रभाव से तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन कर दिया। इसकी अध्यक्षता चास अनुमंडल पदाधिकारी प्रांजल ढांडा कर रहे हैं। साथ ही, भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 163 के तहत बोकारो स्टील प्लांट के आसपास निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है, जिससे कोई भी अप्रिय घटना न हो।
बीएसएल का बड़ा ऐलान: मुआवजा और नौकरी
इस मामले में BSL प्रबंधन ने भी स्थिति को गंभीरता से लेते हुए बड़ा कदम उठाया है। बीएसएल के प्रवक्ता मणिकांत धान ने बताया कि मृतक के परिजनों को 25 लाख रुपये का मुआवजा और एक परिजन को नौकरी दी जाएगी। इसके साथ ही, प्रदर्शनकारियों से संयंत्र के सभी गेट को जिला प्रशासन के सहयोग से खाली करवा लिया गया है।
इतिहास की एक झलक
बोकारो स्टील प्लांट की स्थापना 1964 में हुई थी और इसके लिए कई गांवों को विस्थापित किया गया। तभी से विस्थापितों का यह मुद्दा बार-बार सामने आता रहा है। समय-समय पर इन परिवारों ने रोजगार की मांग को लेकर आंदोलन किए, लेकिन समाधान अधूरा ही रहा।
क्या है आगे की राह?
अब सबकी निगाहें जांच समिति की रिपोर्ट और प्रशासन की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं। क्या इस घटना के बाद विस्थापितों को उनका हक मिलेगा या यह भी बाकी आंदोलनों की तरह भुला दिया जाएगा?
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