क्या टाटा स्टील कर पाएगी 2045 तक नेट जीरो का सपना सच? जानें इसके साहसिक कदम और चुनौतियाँ"
टाटा स्टील का लक्ष्य 2045 तक नेट ज़ीरो बनना है। इसके लिए कंपनी जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाने और ग्रीन स्टील निर्माण के लिए नई तकनीकों को अपना रही है। जानें इसके प्रमुख कदम और भविष्य की चुनौतियाँ।
टाटा स्टील, जो दुनिया की अग्रणी इस्पात कंपनियों में से एक है, ने एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई है — 2045 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य। कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए कंपनी भारत से लेकर यूके और नीदरलैंड तक नई-नई पहल कर रही है। लेकिन, क्या टाटा स्टील का यह साहसिक सपना हकीकत में बदल सकेगा? आइए जानें उनके अब तक के कदम और भविष्य की चुनौतियों के बारे में।
कैसे टाटा स्टील कर रही है बदलाव?
भारत में, टाटा स्टील जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करने के प्रयास में पंजाब के लुधियाना में 0.75 MTPA की क्षमता वाला इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस आधारित प्लांट स्थापित कर रही है, जो स्क्रैप-आधारित होगा। इसका उद्देश्य है कि पारंपरिक स्टील निर्माण की तुलना में उत्सर्जन में कमी आए। इसके साथ, जमशेदपुर प्लांट में हाइड्रोजन गैस के प्रयोग के एक अनोखे परीक्षण के जरिए ब्लास्ट फर्नेस में डीकार्बोनाइजेशन को तेजी देने का प्रयास किया जा रहा है।
यूके और नीदरलैंड में ग्रीन स्टील निर्माण की कोशिशें
यूके में, टाटा स्टील ने अपनी CO₂ उत्सर्जन को 5 मिलियन टन तक कम करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए कंपनी सरकार के सहयोग से इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस तकनीक में £750 मिलियन का निवेश कर रही है। नीदरलैंड के आईमुदीन प्लांट में भी डीकार्बोनाइजेशन के लिए स्थानीय सरकार के साथ चर्चा हो रही है।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन और प्राकृतिक गैस जैसी तकनीकों के लिए अवसंरचना की कमी एक बड़ी चुनौती है। साथ ही, इस्पात उद्योग में स्क्रैप रिकवरी में समय लगेगा, जिससे ग्रीन स्टील की राह आसान नहीं है।
टाटा स्टील के ये साहसिक प्रयास क्या भारत के इस्पात उद्योग को एक नई दिशा देंगे?
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