Potka Celebration: पोटका में शहीद दुसा-जुगल का गौरवशाली इतिहास, मेला और खेलकूद प्रतियोगिता से गूंजा सारसे बुरुहातु चौक!
पोटका में वीर शहीद दुसा-जुगल की 235वीं जयंती के अवसर पर भव्य मेला और खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। भूमिज विद्रोह के नायकों को स्वतंत्रता सेनानी घोषित करने की मांग फिर उठी। जानिए इस ऐतिहासिक विद्रोह की कहानी।
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झारखंड के पोटका स्थित सारसे बुरुहातु चौक पर वीर शहीद दुसा-जुगल सरदार की 235वीं जयंती पर भव्य मेला और खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। यह आयोजन सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष की विरासत को जीवंत करने का संकल्प भी था। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी, जिन्होंने शहीदों को श्रद्धांजलि दी और उनके पदचिह्नों पर चलने का संकल्प लिया।
भूमिज विद्रोह के नायक: दुसा-जुगल सरदार
शहीद दुसा-जुगल सरदार झारखंड के उन गुमनाम नायकों में से हैं, जिन्होंने 1832 के भूमिज विद्रोह में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था। यह विद्रोह ब्रिटिश हुकूमत के उस ज़ुल्म के खिलाफ था, जिसमें आदिवासियों की जमीनें छीनी जा रही थीं और उन्हें गुलाम बनाया जा रहा था। दुसा-जुगल भाइयों ने अपने समुदाय को संगठित कर अंग्रेजों से सीधे टकराव किया और एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया।
माल्यार्पण और श्रद्धांजलि, स्वतंत्रता सेनानी घोषित करने की मांग
इस आयोजन में सबसे पहले शहीद दुसा-जुगल की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। इसके बाद समिति के पदाधिकारियों और स्थानीय लोगों ने दुसा-जुगल को आधिकारिक रूप से स्वतंत्रता सेनानी घोषित करने की मांग उठाई। साथ ही पत्थलगड़ी को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की भी मांग की गई।
क्या है पत्थलगड़ी?
पत्थलगड़ी एक प्राचीन आदिवासी परंपरा है, जिसमें गांवों की सीमा पर बड़े-बड़े पत्थर खड़े किए जाते हैं। यह परंपरा स्थानीय शासन व्यवस्था और स्वायत्तता का प्रतीक है, जिसे अंग्रेजों ने कमजोर करने की कोशिश की थी। दुसा-जुगल जैसे योद्धाओं ने इस परंपरा को बचाने के लिए ब्रिटिशों से संघर्ष किया।
मेला और पारंपरिक नृत्य: आदिवासी संस्कृति की झलक
इस दो दिवसीय मेले में पारंपरिक नृत्य मंडलियों ने अपने प्रदर्शन से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। विभिन्न आदिवासी समुदायों के कलाकारों ने पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य प्रस्तुत किया, जिससे झारखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की झलक देखने को मिली। कार्यक्रम के दौरान उत्कृष्ट नृत्य प्रदर्शन करने वाली मंडलियों को सम्मानित और पुरस्कृत किया गया।
खेलकूद प्रतियोगिता में दिखा जोश और जज़्बा
मेले के दौरान खेलकूद प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया, जिसमें युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कबड्डी, दौड़, भाला फेंक और तीरंदाजी जैसी प्रतियोगिताएं हुईं, जिनमें विजेताओं को समिति द्वारा पुरस्कार प्रदान किए गए।
समिति के सदस्यों ने जताया गर्व और संकल्प
शहीद दुसा-जुगल स्मारक समिति के हरीश सरदार और हिमांशु सरदार ने कहा,
"दुसा-जुगल सरदार का योगदान झारखंड के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाना चाहिए। वे सिर्फ योद्धा नहीं, बल्कि क्रांति के प्रतीक थे। हमें गर्व है कि हम हर साल उनकी याद में यह मेला आयोजित करते हैं, ताकि नई पीढ़ी उनके बलिदान को न भूले।"
विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति
इस ऐतिहासिक आयोजन में सिद्धेश्वर सरदार मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे। इसके अलावा ग्राम प्रधान मुंशी सरदार, विश्वनाथ सरदार, सुरेश सरदार, संजय सरदार, जयसिंह सरदार, चंद्र मोहन सरदार सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।
भूमिज विद्रोह: झारखंड का भूला-बिसरा संघर्ष
भूमिज विद्रोह को इतिहास में वह स्थान नहीं मिला, जिसका वह हकदार था। इस विद्रोह का नेतृत्व दुसा-जुगल सरदार ने किया था, जिन्होंने अपने लोगों की जमीन बचाने और ब्रिटिश शासन से आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए हथियार उठाए थे।
यह विद्रोह झारखंड में आदिवासी अस्मिता और हक की लड़ाई का प्रतीक है। लेकिन अफसोस, कि आज भी दुसा-जुगल सरदार का नाम इतिहास के पन्नों में उतनी प्रमुखता से दर्ज नहीं किया गया, जितना अन्य स्वतंत्रता सेनानियों का किया गया है।
"दुसा-जुगल सरदार को मिले स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा!"
इस मेले के दौरान स्थानीय लोगों और समिति ने सरकार से मांग की कि दुसा-जुगल सरदार को आधिकारिक रूप से स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया जाए। इसके साथ ही उन्होंने पत्थलगड़ी को राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा देने की भी अपील की।
"इतिहास को जिंदा रखना जरूरी है!"
समारोह में मौजूद वक्ताओं ने कहा कि दुसा-जुगल सरदार का बलिदान हमें यह सिखाता है कि अपने अधिकारों के लिए लड़ना कभी व्यर्थ नहीं जाता। अगर हमें अपनी संस्कृति और इतिहास को बचाना है, तो हमें ऐसे आयोजनों को और बढ़ावा देना होगा।
झारखंड के वीर सपूतों को सलाम!
पोटका में आयोजित यह भव्य मेला और खेलकूद प्रतियोगिता सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि अतीत के उन वीरों को नमन करने का अवसर था, जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
दुसा-जुगल सरदार जैसे नायक हमें यह याद दिलाते हैं कि आजादी की लड़ाई सिर्फ तलवार से नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और एकजुटता से लड़ी जाती है।
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