पटना छठ तैयारी: गंगा का बढ़ा जलस्तर बना आस्था की सबसे बड़ी चुनौती!
क्या गंगा के बढ़े जलस्तर के बावजूद पटना प्रशासन छठ पर्व की तैयारियां समय पर पूरी कर पाएगा?
पटना छठ तैयारी: गंगा का बढ़ा जलस्तर बना आस्था की सबसे बड़ी चुनौती!
पटना। लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा नजदीक है — वही पर्व जो सूर्य उपासना, तप, और निस्वार्थ भक्ति का अद्भुत संगम है। इस साल भी राजधानी पटना में हजारों श्रद्धालु गंगा तट पर अर्घ्य देने की तैयारी में जुटे हैं। लेकिन इस बार गंगा का बढ़ा जलस्तर नगर निगम और प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।
नगर निगम ने छठ घाटों की सफाई, रोशनी, मरम्मत और सुरक्षा इंतजामों में तेजी तो जरूर लाई है, लेकिन गंगा का उफनता पानी कई पारंपरिक घाटों को अपने आगोश में ले चुका है।
गंगा का बढ़ा जलस्तर — श्रद्धालुओं के लिए वरदान या चुनौती?
नगर निगम अधिकारियों का कहना है कि इस वर्ष गंगा का जलस्तर सामान्य से ऊपर है। निचले इलाकों के कई प्रसिद्ध घाट — जैसे दीघा घाट, कुर्जी घाट, बांसघाट और कलेक्ट्रेट घाट — पानी में डूबे हुए हैं।
यह स्थिति घाट तैयार करने में बाधा डाल रही है।
हालांकि कुछ अधिकारी मानते हैं कि इसका एक लाभ भी है — श्रद्धालुओं को गंगा तक पहुंचने के लिए लंबा रास्ता तय नहीं करना पड़ेगा।
लेकिन यह राहत अस्थायी है, क्योंकि बढ़ा हुआ जलस्तर सुरक्षा के लिहाज से खतरा भी बन सकता है। गहरे और फिसलन भरे घाट श्रद्धालुओं के लिए जोखिम भरे साबित हो सकते हैं।
नगर निगम ने तेज की तैयारी, वैकल्पिक घाटों पर विचार
पटना नगर निगम ने सभी सर्किलों को तेज कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
नगर आयुक्त यशपाल मीणा के अनुसार, फिसलन रोकने के लिए घाटों पर बालू की परत डाली जाएगी। रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था की जा रही है और जल निकासी की विशेष टीमें चौकन्नी हैं।
बारिश या नदी के पानी से किसी भी तरह की परेशानी न हो, इसके लिए सफाई कर्मियों की अतिरिक्त ड्यूटी लगाई गई है।
साथ ही, श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अस्थायी शौचालय भी घाटों के आसपास बनाए जा रहे हैं।
इस बार निगम वैकल्पिक घाटों की योजना पर भी काम कर रहा है। प्रशासन और आपदा प्रबंधन विभाग के साथ मिलकर सुरक्षित स्थलों की पहचान की जा रही है, ताकि श्रद्धालु बिना किसी डर के अर्घ्य दे सकें।
बिजली विभाग भी तैयार – रोशनी से जगमगाएंगे घाट
छठ पर्व की रातें प्रकाश और श्रद्धा का संगम होती हैं। इसे देखते हुए बिजली विभाग ने घाटों को रोशन करने की तैयारी तेज कर दी है।
कर्मचारियों की विशेष टीमों को ड्यूटी सौंपी गई है ताकि अंधेरे या बिजली कटौती जैसी कोई समस्या न आए।
नगर निगम का दावा है कि तय समय पर सभी प्रमुख घाट पूर्ण रूप से रोशन और सुरक्षित होंगे।
स्थानीय निवासियों की परेशानी बढ़ी
गंगा तट से सटे निचले इलाकों में जलभराव ने निवासियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
कई परिवारों का कहना है कि वे हर साल जिस घाट पर छठ करते हैं, वहां अब नाव से ही पहुंचा जा सकता है।
दीघा और कुर्जी क्षेत्र के कई घरों में पानी भरने से लोगों को सामग्री और प्रसाद तैयार करने में दिक्कतें हो रही हैं।
इसके बावजूद, श्रद्धालुओं की आस्था अडिग है।
“हर साल कुछ न कुछ चुनौती आती है, लेकिन छठ मइया सब आसान कर देती हैं,” दीघा निवासी सविता देवी ने कहा।
प्रशासन ने जारी किए सख्त निर्देश
प्रमंडलीय आयुक्त अनिमेष कुमार पराशर ने अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि सभी घाटों पर रेलिंग, चेतावनी बोर्ड और सुरक्षा घेराबंदी का काम समय पर पूरा किया जाए।
उन्होंने घाट निर्माण की गुणवत्ता पर भी विशेष ध्यान देने को कहा है।
अब तक प्रशासन ने 91 गंगा घाटों और 62 तालाबों में अर्घ्य की व्यवस्था की पुष्टि की है।
संवेदनशील घाटों पर एनडीआरएफ और सिविल डिफेंस टीमों को भी तैनात करने की योजना है।
गहरे पानी वाले घाटों पर चेतावनी संकेतक लगाए जाएंगे और श्रद्धालुओं को जोखिम वाले क्षेत्रों से दूर रहने की अपील की जाएगी।
छठ पर्व का इतिहास और भावनात्मक जुड़ाव
छठ सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि बिहार की पहचान है।
यह पर्व भगवान सूर्य और छठी मइया की पूजा के माध्यम से शुद्धता, संयम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।
चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है और समाप्ति उषा अर्घ्य के साथ।
गंगा तटों, तालाबों और छोटे-छोटे पोखरों पर व्रती महिलाएं निर्जला व्रत रखकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
इस धार्मिक आयोजन का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व इतना गहरा है कि कठिन परिस्थितियों में भी लोग छठ मनाने से पीछे नहीं हटते।
चाहे बारिश हो, ठंड हो या जलस्तर बढ़ा हो — “आस्था की लहर गंगा की लहर से भी गहरी” मानी जाती है।
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