Lohardaga Join: कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति ने छोड़ी AJSU, थामा JMM का हाथ, क्या बदल जाएगा झारखंड का सियासी समीकरण?
लोहरदगा के पूर्व विधायक कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत ने आजसू पार्टी छोड़कर झारखंड मुक्ति मोर्चा की सदस्यता ले ली है। जानिए उनके इस फैसले से झारखंड की राजनीति में क्या बड़ा बदलाव आने वाला है।

रांची/लोहरदगा: झारखंड की राजनीति में एक और बड़ा उलटफेर सामने आया है। लोहरदगा के पूर्व विधायक और झारखंड आंदोलन के प्रमुख चेहरे कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत ने शनिवार को झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का दामन थाम लिया। इसके साथ ही उन्होंने अपने समर्थकों के साथ आजसू पार्टी से पूरी तरह नाता तोड़ लिया है।
यह कदम कोई अचानक नहीं था—नीरू शांति भगत के राजनीतिक झुकाव और हालिया गतिविधियों से यह कयास पहले ही लगाए जा रहे थे। और अब जब उन्होंने आधिकारिक तौर पर झामुमो की सदस्यता ले ली है, तो साफ है कि वे 2024 के चुनाव परिणामों के बाद नई राजनीतिक दिशा तलाश चुकी हैं।
किसने दिलाई सदस्यता और क्या था माहौल?
शनिवार को एक सादे समारोह में झामुमो के केंद्रीय महासचिव विनोद पांडे ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई। उनके साथ कई समर्थकों ने भी पार्टी में प्रवेश किया। यह आयोजन भले ही सादा था, लेकिन राजनीतिक तौर पर इसका संदेश गूंजदार रहा।
नीरू शांति भगत का झामुमो में आना केवल एक व्यक्ति का राजनीतिक फैसला नहीं है—यह झारखंड के विपक्षी खेमे में एनडीए की कमजोर होती पकड़ और झामुमो की बढ़ती ताकत का संकेत है।
दो बार लड़ीं चुनाव, दो बार मिली हार
नीरू शांति भगत ने 2019 और 2024 में लोहरदगा विधानसभा सीट से आजसू पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। लेकिन दोनों ही बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। खास बात यह है कि कमल किशोर भगत के प्रभाव और राजनीतिक विरासत के बावजूद वे सीट जीत नहीं सकीं।
चुनाव के बाद उन्होंने आजसू पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। इसके कुछ समय बाद ही उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की, जिससे अटकलों को और बल मिला।
झामुमो को क्यों चुना नीरू शांति भगत ने?
झामुमो इस वक्त झारखंड में अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटा हुआ है। पार्टी अब सिर्फ राज्य की सीमाओं में नहीं रहना चाहती। सूत्रों के मुताबिक झामुमो अब बिहार और पश्चिम बंगाल में भी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है। ऐसे में नीरू शांति भगत जैसे स्थानीय प्रभावशाली चेहरे पार्टी के लिए उपयोगी हो सकते हैं।
नीरू शांति भगत का राजनीतिक अनुभव, सामाजिक पहुंच और कमल किशोर भगत की छवि—झामुमो के लिए एक सियासी संपत्ति साबित हो सकते हैं।
भाजपा के पूर्व अध्यक्ष भी हुए शामिल
एक दिन पहले ही, भोगनाडीह में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी ने पार्टी छोड़कर झामुमो की सदस्यता ली थी। यह झामुमो की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें वे लगातार एनडीए गठबंधन के नेताओं को तोड़ने और अपने संगठन को मजबूत करने में लगे हैं।
क्या अब लोहरदगा में बदल जाएगा सियासी समीकरण?
नीरू शांति भगत के झामुमो में आने से लोहरदगा की राजनीति में एक नई ऊर्जा आ गई है। जहां पहले वे AJSU के बैनर तले मैदान में थीं, अब एक स्थापित और सत्ताधारी पार्टी के साथ उनकी सियासी लड़ाई में न केवल संसाधनों का बल मिलेगा, बल्कि संगठनात्मक समर्थन भी।
यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या 2029 के चुनाव में नीरू शांति भगत एक बार फिर मैदान में उतरेंगी और इस बार जीत का स्वाद चख पाएंगी?
नीरू शांति भगत का झामुमो जॉइन करना सिर्फ एक व्यक्ति का दल बदल नहीं है, बल्कि झारखंड की राजनीति में सत्ता समीकरणों की पुनर्संरचना की शुरुआत हो सकती है। झामुमो की विस्तारवादी रणनीति और AJSU व भाजपा के अंदर मची हलचल बताती है कि झारखंड में अगले कुछ साल राजनीति से भरपूर और बदलाव से लबालब होंगे।
अब जनता को देखना है कि ये बदलाव जनहित में साबित होते हैं या सिर्फ राजनीतिक गणित का हिस्सा बनकर रह जाते हैं।
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