मज़लिस में छह महीने के बच्चे की शहादत का ज़िक्र, इमाम हुसैन की कुरबानी को किया याद
साकची में मुहर्रम की मजलिस में छह महीने के बच्चे की शहादत का वाकया, इमाम हुसैन की कुरबानी को किया गया याद। मौलाना ने तालीम और सियासत पर दिए अहम संदेश।
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शहर में मुहर्रम के मौक़े पर मजलिस और मातम का सिलसिला जारी है। शुक्रवार की रात साकची के हुसैनी मिशन की इमामबारगाह में आयोजित मजलिस को शिया जामा मस्जिद के पेश इमाम मौलाना जकी हैदर करारवी ने खिताब किया। मौलाना ने अपनी मजलिस में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के छह महीने के बच्चे हजरत अली असगर अलैहिस्सलाम के मसाएब का वाकया पेश किया। इस दौरान अजादारों की आंखों से आंसू बह निकले।
अजादारों का दर्द
मजलिस के बाद गहवारा निकाला गया, और अजादारों ने गहवारे की ज्यारत की। नौहाखानी और सीनाजनी के बाद इमाम की कुरबानी को याद किया गया। मौलाना ने अपने खिताब में कहा कि आज के दौर में मुसलमानों को अधिक से अधिक शिक्षा हासिल करनी चाहिए। उन्होंने तालीम की अहमियत पर जोर देते हुए कहा कि बच्चों को इंजीनियर, डॉक्टर, पायलट आदि बनाने के लिए कौम को आगे आना चाहिए।
इल्म की अहमियत
मौलाना जकी हैदर करारवी ने तालीम की अहमियत पर जोर देते हुए कहा, "मुसलमानों को इल्म से दूर नहीं भागना चाहिए। अगर किसी का बेटा पढ़ाई कर रहा है और उसे मदद की ज़रूरत है, तो कौम के लोग उसकी मदद करें।" उन्होंने मजलिस में शामिल होने के लिए खून का ताहिर होना जरूरी बताया और कहा कि परवरदिगार-ए-आलम ने अहलेबैत-ए-रसूल को हर नजासत से दूर रखा है।
मौलाना की सियासत पर राय
मौलाना ने कहा कि दीनी इल्म भी उतना ही जरूरी है जितना दुनियावी इल्म। उन्होंने कहा, "अपने मजहब को समझें और इस्लामी किताबें पढ़ें। अमामा लगा कर डॉक्टरी और इंजीनियरिंग करने में कोई हर्ज नहीं है। मौलाना सियासत भी कर सकते हैं, लेकिन इस्लामिक उसूलों को याद रखना चाहिए।"
छह महीने के बच्चे की शहादत
मौलाना जकी हैदर करारवी ने कर्बला के मैदान में छह महीने के बच्चे हजरत अली असगर अलैहिस्सलाम की शहादत का वाकया पढ़ा। उन्होंने बताया कि इमाम हुसैन जब तन्हा रह गए तो उन्होंने मदद की पुकार लगाई। इस पुकार के बाद खयाम-ए-हुसैनी से रोने की आवाज आई, और हजरत अली असगर ने खुद को झूले से गिरा दिया। इमाम हुसैन ने बच्चे को गोद में लेकर यजीदी फौज के सामने पेश किया और पानी मांगा। लेकिन अमर इब्ने साद ने हुरमुला से बच्चे को कत्ल करने का हुक्म दिया, और हुरमुला ने भारी तीर से बच्चे के गले को निशाना बनाया।
अजादारों की भावनाएं
मौलाना ने कहा कि इमाम हुसैन ने बच्चे के खून को अपने हाथों पर लिया और जमीन पर फेंकने का इरादा किया। लेकिन जमीन और आसमान दोनों ने इस खून को ठिकाना देने से इनकार कर दिया। उन्होंने यह खून अपने चेहरे पर मल लिया। अजादारों की आंखों से आंसू बह निकले और शायर की पंक्तियां गूंज उठीं: "इंकार आसमान को है, राजी जमीन नहीं, असगर तुम्हारे खून का ठिकाना कहीं नहीं।"
मां की बेहोशी
इमाम हुसैन जब बच्चे की लाश लेकर खैमे के दर पर आए, तो मां को कैसे आवाज दें, यह सोचते रहे। आखिरकार, मां को आवाज दी और बच्चे की लाश देख कर मां बेहोश हो गई। इमाम की चार साल की बच्ची सकीना ने कहा, "बाबा, असगर को पानी पिला लाए?" इमाम ने कहा, "बेटी, असगर शहीद हो चुके हैं।"
भावुक नजारा
इमाम ने अपने लख्त-ए-जिगर की लाश खैमे के पीछे दफन की और शायर ने लिखा: "नन्हीं सी कब्र खोद कर असगर को गाड़ कर, शब्बीर उठ खड़े हुए दामन को झाड़ कर।"
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