Bengal Dispute: ममता बनर्जी पर किरन रिजिजू का सीधा हमला, क्या संविधान का अपमान कर रही हैं दीदी?
वक्फ कानून को लागू न करने पर ममता बनर्जी पर किरन रिजिजू और केंद्र सरकार ने उठाए सवाल। क्या संविधान के खिलाफ जा रही है बंगाल सरकार? जानिए इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी।

पश्चिम बंगाल एक बार फिर देश की सियासत के केंद्र में है। इस बार मुद्दा है — वक्फ कानून (Waqf Act)। केंद्र सरकार ने इस कानून को संसद में पास किया है, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे अपने राज्य में लागू करने से साफ इनकार कर दिया है। अब इसी मुद्दे को लेकर केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने ममता पर तीखा हमला बोला है।
उन्होंने NDTV के साथ बातचीत में ममता बनर्जी के बयान को “अजीब” और “संविधान विरोधी” बताते हुए कहा, “जो व्यक्ति संसद द्वारा बनाए गए कानून को मानने से इनकार करता है, क्या उसे संविधान की किताब पकड़ने का नैतिक अधिकार है? क्या वो डॉ. अंबेडकर का सम्मान करते हैं?”
वोट बैंक या संवैधानिक जिम्मेदारी?
रिजिजू ने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी और उनके जैसे नेता मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक के तौर पर देखते हैं। उन्होंने सवाल किया कि “क्या इन नेताओं को संविधान की परवाह है या सिर्फ राजनीतिक फायदे की?” इस बयान ने देशभर में एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
यह पहली बार नहीं है जब भाजपा ने ममता के इस फैसले की आलोचना की है। इससे पहले केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी ममता की टिप्पणी को “असंवैधानिक” बताया था। उन्होंने याद दिलाया कि ममता ने CAA (नागरिकता संशोधन अधिनियम) पर भी ऐसे ही बयान दिए थे, लेकिन अंततः वो कानून भी बंगाल में लागू हुआ।
ममता का पुराना स्टैंड
ममता बनर्जी ने पहले ही साफ किया है कि उनकी सरकार न तो CAA, NRC, UCC और न ही वक्फ कानून को पश्चिम बंगाल में लागू करेगी। उन्होंने अपने समर्थकों से कहा था कि “कुछ लोग आपको आंदोलन के लिए उकसाएंगे, लेकिन जब तक दीदी हैं, आपको और आपकी संपत्ति को कोई नुकसान नहीं होगा।”
यह बयान उनकी राजनीति में मुस्लिम समुदाय के प्रति उनके रुख को दर्शाता है, जो बंगाल की आबादी में एक बड़ा हिस्सा हैं। लेकिन भाजपा इसे संविधान के खिलाफ उठाया गया कदम मान रही है।
ऐतिहासिक संदर्भ: वक्फ एक्ट और विवाद
वक्फ कानून का इतिहास भारत में मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों की देखरेख से जुड़ा है। इसका उद्देश्य ऐसी संपत्तियों का सही इस्तेमाल सुनिश्चित करना है, लेकिन कई बार इनका राजनीतिक उपयोग भी हुआ है। संसद में लंबे विमर्श के बाद इसे पारित किया गया, जिससे इसे केंद्रीय मान्यता मिली।
लेकिन पश्चिम बंगाल जैसे राज्य, जहां क्षेत्रीय दलों की पकड़ मजबूत है, वे अकसर केंद्र के कानूनों के खिलाफ अपनी स्थिति स्पष्ट करते रहे हैं। विशेषकर जब वे कानून सीधे-सीधे उनके वोट बैंक से जुड़े होते हैं।
मुर्शिदाबाद में तनाव: नया मोड़
विवाद तब और गहराया जब मुर्शिदाबाद के धूलियन इलाके में शुक्रवार को हिंसा भड़क गई। साउथ 24 परगना के भांगर में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हुई। कई पुलिसकर्मी घायल हो गए और पुलिस वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। इस घटना को केंद्र सरकार ममता की ‘सांप्रदायिक तुष्टिकरण नीति’ से जोड़ रही है।
क्या कहती है संविधान की आत्मा?
किरन रिजिजू और भाजपा नेताओं का मुख्य तर्क यही है कि एक मुख्यमंत्री संसद द्वारा पारित कानून को नहीं मान सकता। वे इसे संविधान की आत्मा के खिलाफ मानते हैं। “अगर कोई चुना हुआ प्रतिनिधि संसद के कानूनों को लागू नहीं करता, तो क्या वो संविधान के प्रति ईमानदार है?”— यही सवाल केंद्र सरकार उठा रही है।
चुनावी पृष्ठभूमि में बयानबाज़ी
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह सारा विवाद 2026 और 2029 के लोकसभा चुनावों की तैयारी का हिस्सा है। ममता बनर्जी अपने को मुसलमानों की रक्षक और दिल्ली की भाजपा सरकार के खिलाफ 'प्रतिरोध की आवाज' के रूप में पेश करना चाहती हैं, वहीं भाजपा कानून और संविधान की रक्षा के नाम पर विपक्षी दलों पर नैतिक दबाव बना रही है।
पश्चिम बंगाल की सियासत एक बार फिर संवैधानिक सवालों और वोट बैंक की राजनीति के बीच उलझ गई है। क्या ममता बनर्जी का वक्फ कानून पर विरोध उन्हें सियासी फायदा देगा या भाजपा के हमलों के सामने यह मुद्दा उल्टा पड़ जाएगा? क्या यह विवाद देश की संघीय व्यवस्था की परीक्षा है? आने वाले समय में इन सवालों के जवाब मिलेंगे — लेकिन अभी के लिए, ममता बनर्जी और भाजपा के बीच यह संघर्ष राजनीतिक तापमान को काफी बढ़ा चुका है।
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