Giridih Tragedy – झोलाछाप डॉक्टर के इलाज से बालक की मौत, परिजनों में मचा हड़कंप
गिरिडीह जिले में झोलाछाप डॉक्टर के इलाज से 13 वर्षीय धनंजय कुमार की मौत, परिवार में मचा हड़कंप। पढ़ें कैसे परिजनों ने प्रशासन से कार्रवाई की मांग की।
झारखंड के गिरिडीह जिले से एक दिल दहला देने वाली खबर आई है। घोरथंबा बबनी गांव में 13 वर्षीय बालक धनंजय कुमार की मौत झोलाछाप डॉक्टर के इलाज के बाद हो गई। यह मामला स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही और अवैध चिकित्सा प्रैक्टिस पर सवाल खड़ा करता है।
क्या हुआ था?
धनंजय कुमार, रतन चौधरी का 13 वर्षीय बेटा, हाल ही में सर्दी और बुखार से परेशान था। परिजनों ने उसे मंगलवार को तारानाखो चौक पर डॉक्टर विनोद कुमार ठाकुर के पास ले जाकर इलाज कराया। बताया जाता है कि इस डॉक्टर ने बिना सही मेडिकल प्रमाणपत्र और लाइसेंस के इलाज किया। इलाज के दौरान बालक को इंजेक्शन दिया गया, जिससे उसकी हालत बिगड़ गई।
परिजनों की चिंता और अस्पताल में भर्ती
जैसे ही धनंजय की स्थिति गंभीर हुई, परिजनों ने उसे कोडरमा के सदर अस्पताल ले जाया। लेकिन, डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। यह घटना ग्रामीणों और स्वास्थ्य विभाग के लिए गंभीर सवाल खड़ा करती है कि आखिर क्यों ऐसे अवैध चिकित्सकों की जांच नहीं की जाती है और आम लोग कैसे उनकी जाल में फंस जाते हैं।
पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई
घटना के बाद पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। इस मामले में आगे की जांच शुरू कर दी गई है। पुलिस और प्रशासन ने इस प्रकार के मामलों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की बात कही है।
झोलाछाप डॉक्टर की समस्या का इतिहास
झारखंड और अन्य राज्यों में झोलाछाप डॉक्टरों की समस्या एक गंभीर मुद्दा बन चुकी है। इन डॉक्टरों के पास ना तो उचित चिकित्सा ज्ञान होता है और ना ही मेडिकल लाइसेंस। बावजूद इसके, ये लोगों को इलाज के नाम पर बड़ी कीमत चुकवाते हैं। अक्सर इनकी इलाज की प्रक्रिया के कारण मरीजों की हालत और बिगड़ जाती है।
सरकार की जिम्मेदारी और समाधान की आवश्यकता
यह घटना सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली और प्रशासन की जिम्मेदारी को रेखांकित करती है। अगर इन झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ समय पर कार्रवाई की जाए, तो ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है। चिकित्सा क्षेत्र में निगरानी और नियमित जांच से ही इनकी जड़ें काटी जा सकती हैं।
परिजनों का दुख और सवाल
धनंजय कुमार के परिजनों का कहना है कि उन्होंने पहले भी कई बार प्रशासन से अपील की थी कि अवैध चिकित्सकों पर रोक लगाई जाए, लेकिन उनके अनुरोध पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। उनका कहना है कि ऐसे चिकित्सकों के इलाज से ना केवल मरीजों की जिंदगी खतरे में पड़ती है, बल्कि पूरे समाज का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।
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