Giridih Court: नाबालिग का अपहरण, शादी और धर्म परिवर्तन मामले में आरोपी को मिली सात साल की सजा
गिरिडीह कोर्ट ने नाबालिग का अपहरण कर जबरन शादी और धर्म परिवर्तन करने के आरोपी साजिद अंसारी को सात साल की सजा और 25 हजार का जुर्माना लगाया। जानिए इस मामले की पूरी कहानी।
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गिरिडीह, 13 फरवरी: गिरिडीह के एडीजे आठ सह विशेष पोक्सो कोर्ट के जज यशवंत प्रकाश ने बुधवार को एक अहम निर्णय सुनाया, जिसमें उन्होंने नाबालिग का अपहरण कर शादी करने और धर्म परिवर्तन कराने के आरोपी साजिद अंसारी को सात साल की सजा सुनाई। इसके साथ ही उन पर 25 हजार का जुर्माना भी लगाया गया, और जुर्माना न देने पर छह महीने की अतिरिक्त सजा काटने का आदेश भी दिया। यह मामला धनवार थाना क्षेत्र के एक गांव का है, जो 10 जून 2018 को घटित हुआ था।
क्या था मामला?
10 जून 2018 को साजिद अंसारी ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक नाबालिग का अपहरण किया। आरोप है कि उसने जबरन उस नाबालिग से शादी की और उसका धर्म परिवर्तन करवा दिया। इस मामले में नाबालिग ने साजिद अंसारी के अलावा उसके साथी मोइन अंसारी, उसकी मां हाशिरन खातून और सद्दाम अंसारी को भी आरोपी ठहराया था। नाबालिग द्वारा दिए गए बयान के बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू की।
साजिद अंसारी को मिली सजा, लेकिन क्यों?
सात साल तक चली जांच के बाद धनवार पुलिस ने साजिद अंसारी को ही मुख्य आरोपी माना। कोर्ट में सरकारी वकील ने साक्ष्य और गवाहों के आधार पर सजा की मांग की। इसके बाद पोक्सो कोर्ट के विशेष जज यशवंत प्रकाश ने मामले की गहनता से जांच करते हुए साजिद अंसारी को सात साल की सजा सुनाई। सजा के साथ उन्हें 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।
साजिद अंसारी के साथ उसके साथी मोइन अंसारी, उसकी मां हाशिरन खातून और सद्दाम अंसारी भी आरोपी थे, लेकिन जांच के दौरान यह साबित हुआ कि साजिद ही इस अपराध का मुख्य आरोपी था।
पोक्सो एक्ट और इसके महत्व
पोक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act) बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से बचाव के लिए बनाए गए कानून हैं। यह एक्ट विशेष रूप से बच्चों के शारीरिक और मानसिक शोषण को रोकने के लिए है। इस कानून के तहत, नाबालिगों के खिलाफ अपराध करने वालों को कड़ी सजा का प्रावधान है। गिरिडीह कोर्ट का यह फैसला नाबालिगों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए एक अहम कदम साबित होता है।
धर्म परिवर्तन और महिला अधिकार
इस मामले में धर्म परिवर्तन की बात भी सामने आई है, जो समाज में एक संवेदनशील मुद्दा है। कई बार धर्म परिवर्तन को लेकर विवाद उठता है, खासकर जब यह नाबालिगों या महिलाओं के खिलाफ किया जाता है। इस तरह के मामलों में कानून की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। साजिद अंसारी द्वारा नाबालिग का धर्म परिवर्तन कराना इस बात को उजागर करता है कि समाज में ऐसे मामलों की गंभीरता कितनी बढ़ गई है, और इन्हें रोकने के लिए सख्त कानूनों की आवश्यकता है।
अदालत का महत्वपूर्ण फैसला
गिरिडीह कोर्ट का यह फैसला महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक बड़ा संदेश देता है। विशेषकर पोक्सो एक्ट के तहत सजा मिलने के बाद समाज में यह सवाल उठता है कि बच्चों और नाबालिगों के खिलाफ अपराधों को लेकर हमारी कानूनी व्यवस्था कितनी सख्त है। अदालत ने इस मामले में दोषियों को कड़ी सजा देकर यह सिद्ध किया कि ऐसे मामलों में कोई भी समझौता नहीं किया जाएगा।
कैसे होती है पोक्सो एक्ट के तहत जांच?
पोक्सो एक्ट के तहत मामलों की जांच पूरी प्रक्रिया से होती है, जिसमें बच्चे के बयान, गवाहों के बयान और अन्य साक्ष्यों की पुष्टि की जाती है। इस मामले में भी पुलिस ने सात साल तक जांच की और साक्ष्यों को प्रस्तुत किया, जिसके बाद कोर्ट ने सजा सुनाई।
गिरिडीह के इस मामले में जज यशवंत प्रकाश ने एक कड़ा संदेश दिया है कि नाबालिगों के खिलाफ अपराधों को किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। साजिद अंसारी को मिली सात साल की सजा और जुर्माने का फैसला न सिर्फ पीड़िता के लिए न्याय की उम्मीद जगाता है, बल्कि समाज में इस तरह के अपराधों के खिलाफ एक कड़ा संदेश भी देता है। अब देखना यह है कि इस फैसले से समाज में और न्यायपालिका में बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूकता कितनी बढ़ेगी।
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