ग़ज़ल - 11 - रियाज खान गौहर, भिलाई
भेदभाव हम ना रख्खें दिलों के दरमियां काम आयें हर किसी के मुश्किलों के दरमियां कुछ ना कुछ होता रहता है घरों के दरमियां अपना दुखड़ा क्या सुनाते दोस्तों के दरमियां .......
गजल
भेदभाव हम ना रख्खें दिलों के दरमियां
काम आयें हर किसी के मुश्किलों के दरमियां
कुछ ना कुछ होता रहता है घरों के दरमियां
अपना दुखड़ा क्या सुनाते दोस्तों के दरमियां
नफरतों के बीज बो कर वो दिलों के दरमियां
रोटियां भी सेंकते हैं मसअलों के दरमियां
राह में गुमराह करके छोड़ देंगे वो तुम्हें
भूलकर भी तुम ना रहना लीड़रों के दरमियां
हौसला कभी पीछे हटनें नही देता मुझे
जिंदगी काटी है मैनें मरहलों के दरमियां
वक्त आता है बुरा तो सब पता चलता है खुद
कौन अपनें काम आता मुश्किलों के दरमियां
जिंदगी की क्या हकीकत है पता चल जायेगा
देखिये रहकर कभी तो मुफलिसों के दरमियां
मुझको गौहर गायबानां हौसला उसनें दिया
जिंदगी जद में रही जब कातिलों के दरमियां
गजलकार
रियाज खान गौहर ,भिलाई
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