तुलसी: एक दिव्य उपहार-डॉ. ऋषिका वर्मा
तुलसी, तुम जीवन का सार, स्वास्थ्य का आधार, हरीतिमा का श्रृंगार। तुमसे घर आंगन सजा, तुमसे हर व्याधि दूर भगा।....
तुलसी: एक दिव्य उपहार
तुलसी, तुम जीवन का सार,
स्वास्थ्य का आधार, हरीतिमा का श्रृंगार।
तुमसे घर आंगन सजा,
तुमसे हर व्याधि दूर भगा।
तुम हो विष्णु की प्रिय प्रतिमा,
तुमसे पावन है हर यज्ञ की अग्नि।
हर पत्ते में छुपा है अमृत-रस,
मेरे घर-आँगन मे रहना बसी।
धर्म का दीप जलाए रखती हो,
आंगन में पूजा की खुशबू भरती हो।
संजीवनी बन हर रोग हरती हो,
प्रकृति का आशीष सदा देती हो।
तुमसे सीखा सादगी का पाठ,
तुमसे पाया स्नेह और साथ।
हर घर में हो तुम पूज्यनीय,
तुम हो प्रकृति की अमूल्य निधि।
हे तुलसी, तुम न हो केवल वनस्पति,
तुम हो संस्कृति और आस्था की गाथा।
तुमसे जीवन का संदेश मिलता है,
तुम्हारे बिना जीवन अधूरा लगता है।
स्वरचित कविता
डॉ. ऋषिका वर्मा
गढ़वाल उत्तराखंड
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