मिट्टी से मोह  - डा तरूण राय कागा 

मेरा अपनी मिट्टी से मोह तन मन से  मेरा अपनी मिट्टी से प्रेम जीवन वचन से

Oct 18, 2024 - 11:18
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मिट्टी से मोह  - डा तरूण राय कागा 
मिट्टी से मोह  - डा तरूण राय कागा 

मिट्टी से मोह 

मेरा अपनी मिट्टी से मोह तन मन से 
मेरा अपनी मिट्टी से प्रेम जीवन वचन से

                     मां की कोख से बाहर निकल रखा क़दम 
                     तब से करता प्यार दुलार तन मन से 

बच्चपन में घरोंदा बनाया करता भीगी धूल का
फिर बिगाड़ देता बेवक़ूफ़ बन तन मन से 

                     यदा-क़दा मुठ्ठी भर गटक लेता मिट्टी को
                      सुगंध भरी सलोनी सौधा स्वाद तन मन से 

लोट पोट कर चूम लेता घुटनों बल चल 
चाट लेता रेत चुपके से तन मन से 

                      मिट्टी से उपजा खाता अनाज फल मेवा साग 
                      पीता पानी पाताल का प्यासा तन मन से

 होती वर्षा बादल गरज बिजली चमकती चका चोंध
ताल तलाई पानी पालर पीता तन मन से 

                     आंधियों में धूल उड़ कर पड़ती आंखों में 
                      मसल देता मुड़ कर अपने तन मन से 

 झौंपड़ी में बूंदें बरसती धारो धार आर-पार 
बेपरवाह बन टना टना रहता तन मन से 

                      मालूम था मुझे मेरा अंतिम घर क़बर 'कागा' 
                      खोद गाड़ ऊपर डालेंगे मिट्टी तन मन से 

  क़लमकार 
डा, तरूण राय कागा 
पूर्व विधायक  , कवि साहित्यकार 
चौहटन ज़िला बाड़मेर राजस्थान

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।