अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती ( atal Bihari Vajpayee 100th Birth Anniversary) : कैसे इस महापुरुष ने भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया?
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर जानें उनकी उपलब्धियां, कैसे उन्होंने भारत को परमाणु शक्ति बनाया और भारतीय राजनीति में स्वदेशी सोच को मजबूत किया।
अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती ( atal Bihari Vajpayee 100th Birth Anniversary) : एक युग का आरंभ और भारतीय राजनीति का अभूतपूर्व योगदान
25 दिसंबर 2024 को, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी की 100वीं जयंती मनाई जाएगी। यह एक ऐसा अवसर है, जब हम उस महापुरुष को याद करेंगे, जिन्होंने स्वतंत्र भारत में एक नई सोच और दिशा दी। अटल जी का व्यक्तित्व, कृतित्व और उनकी दूरदर्शिता आज भी करोड़ों लोगों के दिलों में बसी हुई है।
कांग्रेस के प्रभुत्व से परे भारतीय राजनीति
1947 के बाद भारतीय राजनीति पर कांग्रेस पार्टी का एकाधिकार था। यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कांग्रेस पार्टी, महात्मा गांधी के नेतृत्व में, एक राजनीतिक पार्टी के बजाय एक जन आंदोलन थी। परंतु, इस प्रभुत्व को चुनौती देने वाले पहले व्यक्ति थे अटल बिहारी वाजपेयी।
1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ के नेतृत्व को 1950 के दशक में अटल जी ने संभाला। 1957 में वे पहली बार लोकसभा सांसद बने। उनकी शानदार वाकपटुता, कवि हृदय और दूरदर्शिता ने उन्हें देशभर में लोकप्रिय बना दिया।
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी का पहला उद्बोधन
अटल जी का भारतीय भाषाओं, विशेषकर हिंदी, के प्रति अटूट प्रेम था। 1977 में जब वह विदेश मंत्री बने, उन्होंने पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण दिया। यह एक ऐसा क्षण था जिसने भारत को विश्व मंच पर गौरवान्वित किया।
आपातकाल और लोकतंत्र की रक्षा
1975 में जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया, तो अटल जी, लालकृष्ण आडवाणी और जनसंघ के कई नेता जेल भेज दिए गए। लोकतंत्र की रक्षा के लिए उन्होंने अपने दल को जनता पार्टी में विलय कर दिया। 1977 में जनता पार्टी ने देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई, जिसमें अटल जी विदेश मंत्री बने।
भारतीय जनता पार्टी का गठन
जनता पार्टी के विघटन के बाद, 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। अटल जी इसके पहले अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में, भाजपा 1984 के दो सांसदों से बढ़कर 1996 में लगभग 200 सांसदों तक पहुंची।
प्रधानमंत्री के रूप में नई दिशा
1996 में अटल जी पहली बार प्रधानमंत्री बने। हालांकि उनकी सरकार केवल 13 दिनों तक चली, लेकिन उनके चरित्र और नैतिकता ने लोगों का दिल जीत लिया। जब सरकार को बहुमत नहीं मिला, तो उन्होंने खरीद-फरोख्त की राजनीति से दूर रहते हुए इस्तीफा दे दिया।
1998 में अटल जी ने दोबारा प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उनके नेतृत्व में, भारत ने 11 मई 1998 को पोखरण में परमाणु परीक्षण किया। यह एक ऐसा कदम था जिसने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देशों की सूची में खड़ा कर दिया।
गांवों की तस्वीर बदलने वाली योजनाएं
अटल जी ग्रामीण भारत के विकास के प्रति बेहद संवेदनशील थे। उन्होंने प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना की शुरुआत की, जिसके तहत गांवों को पक्की सड़कों से जोड़ा गया। इस योजना का 100% खर्च केंद्र सरकार ने उठाया।
इसके अलावा, 2001 में अंत्योदय अन्न योजना शुरू की गई, जिसने देश के गरीबों को सस्ते दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया। यह योजना आज भी करोड़ों गरीबों के लिए वरदान बनी हुई है।
कारगिल युद्ध और सैनिकों का सम्मान
1999 के कारगिल युद्ध के दौरान अटल जी ने देश के सैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए सीमा पर खुद पहुंचकर उन्हें प्रेरित किया। उन्होंने अमेरिका को साफ संदेश दिया कि जब तक भारत की सीमा से आखिरी पाकिस्तानी सैनिक नहीं हटेगा, तब तक न तो युद्धविराम होगा और न ही बातचीत।
एक कवि हृदय नेता
अटल जी का कवि हृदय और उनके राष्ट्रीय कर्तव्य के प्रति अटूट समर्पण उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाता था। उनके कविता संग्रह “मेरी इक्यावन कविताएं” में उनकी सोच और संवेदनशीलता झलकती है। उनकी कविता,
"हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा।"
आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरणा देती है।
अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन भारतीय राजनीति में एक युग की तरह था। उनके विचार, कार्य और नेतृत्व ने भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनकी 100वीं जयंती पर, हम उनके महान योगदान को याद करते हुए उन्हें नमन करते हैं।
ऐसे महापुरुष के जीवन से प्रेरणा लेकर हमें भी भारतीयता और राष्ट्रीय कर्तव्य के मार्ग पर चलना चाहिए।
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