चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर ने चांद पर हासिल की बड़ी उपलब्धि
चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर ने चांद पर हासिल की बड़ी उपलब्धि
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Indian Space Research Organisation (ISRO) ने चंद्रयान-3 के रोवर प्रज्ञान को लेकर एक बड़ी खुशखबरी साझा की है। ISRO ने बताया है कि प्रज्ञान रोवर ने चांद से महत्वपूर्ण जानकारी भेजी है। ये निष्कर्ष विक्रम लैंडर के जरिए चंद्रमा के शिवशक्ति प्वाइंट के पास किए गए अहम अनुसंधान पर आधारित हैं। प्रज्ञान रोवर ने वहां मौजूद चट्टानों के टुकड़ों और उनकी उत्पत्ति के बारे में महत्वपूर्ण डेटा इकट्ठा किया है।
इसरो के अनुसार, प्रज्ञान रोवर ने लैंडिंग स्थल पर छोटे गड्ढों के रिम, दीवार ढलानों और फर्श के आसपास फैले छोटे चट्टान के टुकड़ों का अध्ययन किया है। रोवर ने एक चंद्र दिवस में लगभग 103 मीटर की दूरी तय की है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि ये परिणाम चंद्र अन्वेषण के संदर्भ में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं क्योंकि वे पिछले अध्ययनों का समर्थन करते हैं जो चंद्र रेगोलिथ के अंदरूनी हिस्से में चट्टान के टुकड़ों के धीरे-धीरे मोटे होने का संकेत देते हैं। 27 किलोग्राम के प्रज्ञान रोवर को विक्रम लैंडर के अंदर रखकर चंद्रमा पर भेजा गया था। यह रोवर चंद्रमा की मिट्टी का विश्लेषण करने के लिए कैमरों और उपकरणों से लैस था। इसके साथ ही, यह ISRO का लोगो और भारतीय तिरंगा भी चंद्रमा की सतह पर ले गया था।
निष्कर्षों के अनुसार, जब प्रज्ञान रोवर लैंडिंग स्थल, शिव शक्ति प्वाइंट के पश्चिम की ओर लगभग 39 मीटर की दूरी पर पहुंचा, तो चट्टान के टुकड़ों की संख्या और आकार में वृद्धि हुई। वैज्ञानिकों का मानना है कि चट्टान के टुकड़ों का एक संभावित स्रोत लगभग 10 मीटर व्यास का गड्ढा हो सकता है।
इस साल की शुरुआत में अहमदाबाद में ग्रहों, एक्सोप्लैनेट्स और हैबिटेबिलिटी पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए शोध पत्र में यह जानकारी दी गई थी कि प्रज्ञान रोवर ने शिव शक्ति प्वाइंट से 39 मीटर आगे बढ़ते हुए बड़े आकार की चट्टानें पाईं। इन चट्टानों की लंबाई 1 सेंटीमीटर से लेकर 11.5 सेंटीमीटर तक थी। ये टुकड़े छोटे गढ्ढों के किनारे, ढलानों और सतह पर बिखरे हुए थे, लेकिन इनमें से किसी की भी लंबाई 2 मीटर से अधिक नहीं थी।
हाल ही में, ISRO प्रमुख एस सोमनाथ ने बताया था कि उनका अगला मून मिशन चंद्रयान-4 होगा, जो ‘शिव शक्ति’ बिंदु से पृथ्वी पर चंद्र नमूने वापस लाएगा।
इसरो की यह उपलब्धि न सिर्फ भारतीय वैज्ञानिकों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है। यह सफलता भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण मिशनों के लिए एक मजबूत नींव रखेगी और अंतरिक्ष अनुसंधान में भारत की अग्रणी भूमिका को और मजबूत करेगी।
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