Amrit Sanchar Jamshedpur : जमशेदपुर में 28 सिखों ने अमृत छककर गुरु की राह पकड़ी, क्या है अमृत संचार का महत्व?
जमशेदपुर के जेम्को गुरुद्वारे में 28 सिखों ने अमृत संचार में भाग लेकर गुरु की राह चुनी। जानें, इस धार्मिक अनुष्ठान का महत्व और इसकी प्रक्रिया।
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गुरु की राह पर 28 सिख: जमशेदपुर के जेम्को गुरुद्वारे में हुआ अमृत संचार कार्यक्रम
जमशेदपुर – रविवार को सिख समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक दिन रहा जब गुरुद्वारा साहिब जेम्को आज़ाद बस्ती में अकाली दल जमशेदपुर द्वारा अमृत संचार कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस पावन अवसर पर शहर के 28 सिखों ने अमृत छककर गुरु की राह अपनाई और अमृतधारी सिख बनने का सौभाग्य प्राप्त किया।
गुरुद्वारा साहिब में आयोजित इस धार्मिक अनुष्ठान में 16 महिलाएं और 12 पुरुष शामिल हुए, जिन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब की हजूरी में अमृत पान किया। इस आयोजन को सफल बनाने में अकाली दल जमशेदपुर के प्रमुख सदस्य ज्ञानी जरनैल सिंह, सुखदेव सिंह, रविंद्र सिंह, चरणजीत सिंह, सतपाल सिंह, अमरजीत सिंह और गुरुदेव सिंह की अहम भूमिका रही।
गुरुद्वारे के प्रधान सरदूल सिंह ने अमृतधारी बने सभी व्यक्तियों को बधाई दी और कहा कि "आज से इनका जीवन पूरी तरह सफल हो गया है, क्योंकि इन्होंने गुरु का सिख बनने का मार्ग चुना है।"
अमृत संचार: क्या होता है यह पवित्र अनुष्ठान?
सिख धर्म में अमृत संचार (जिसे खंडे-बाटे का अमृत भी कहा जाता है) गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा शुरू की गई एक पवित्र दीक्षा विधि है। 1699 में बैसाखी के दिन श्री आनंदपुर साहिब में गुरु गोबिंद सिंह जी ने पंज प्यारों को अमृत छका कर खालसा पंथ की स्थापना की थी।
आज भी सिख धर्म में यह परंपरा उतनी ही पवित्र और महत्वपूर्ण मानी जाती है। जो व्यक्ति अमृत संचार में भाग लेता है, वह गुरु ग्रंथ साहिब जी की हजूरी में दी जाने वाली विशेष अरदास और पांच प्यारों द्वारा तैयार किए गए अमृत को ग्रहण करता है। इसके बाद वह गुरु के सिख के रूप में जाना जाता है और उसे पांच ककार (केश, कंघा, कड़ा, किरपान और कच्छेरा) धारण करने की प्रतिज्ञा लेनी होती है।
समारोह में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब
इस खास मौके पर सिख नौजवान सभा, आजाद बस्ती जेम्को के युवा और शहरभर के श्रद्धालु बड़ी संख्या में शामिल हुए। स्थानीय निवासी करनदीप सिंह ने बताया कि धन-धन बाबा दीप सिंह जी के शहीदी समागम का आयोजन भी अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ संपन्न हुआ। उन्होंने इस भव्य आयोजन के लिए सिख नौजवान सभा का आभार प्रकट किया और कहा कि "आज हजारों की संख्या में संगत इस समागम का हिस्सा बनी।"
उन्होंने यह भी बताया कि टाटा प्रबंधन द्वारा जेम्को मैदान की घेराबंदी की जा रही है, जिससे भविष्य में ऐसे बड़े धार्मिक आयोजनों के लिए स्थान को सुरक्षित किया जा सके।
अमृतधारी बनने के बाद क्या बदलता है जीवन में?
जो व्यक्ति अमृत संचार ग्रहण करता है, उसके जीवन में कई बड़े बदलाव आते हैं। वह अब एक खालसा सिख बन जाता है और उसे गुरु की दी गई मर्यादाओं का पालन करना होता है।
अमृतधारी सिखों के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियम:
- पांच ककार धारण करना – एक अमृतधारी को अपने शरीर पर पांच ककार धारण करने होते हैं।
- मांस-मदिरा से परहेज – सिख धर्म में अमृतधारी व्यक्ति को मांस, शराब और किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों से दूर रहना होता है।
- नियमित पाठ और अरदास – एक अमृतधारी सिख को रोजाना पांच बनियां (जपुजी साहिब, जाप साहिब, तव-प्रसाद सवैये, चौपाई साहिब और अनंद साहिब) का पाठ करना होता है।
- किसी भी प्रकार के अंधविश्वास से दूरी – अमृतधारी सिख को केवल गुरु ग्रंथ साहिब की शिक्षाओं को मानना होता है और किसी भी तरह की रूढ़ियों और अंधविश्वास से दूर रहना पड़ता है।
- सिख मर्यादा का पालन – एक अमृतधारी को हमेशा सच्चाई, ईमानदारी, सेवा और परोपकार के मार्ग पर चलना होता है।
जमशेदपुर में लगातार बढ़ रहा है अमृत संचार का प्रभाव
जमशेदपुर में सिख समुदाय लगातार अमृत संचार कार्यक्रमों को बढ़ावा दे रहा है, जिससे युवा पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ सके और सिख धर्म की शिक्षाओं का पालन कर सके।
गुरुद्वारा साहिब जेम्को के प्रमुख सेवक सरदूल सिंह ने इस आयोजन की सफलता पर कहा कि "यह देखना बहुत सुखद है कि आज का युवा फिर से गुरु की शिक्षाओं की ओर लौट रहा है।"
इस तरह के कार्यक्रमों से समाज में सिख धर्म के मूल्यों और परंपराओं को मजबूत किया जा रहा है।
अमृत संचार केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन बदलने वाली प्रक्रिया है
जमशेदपुर के गुरुद्वारा साहिब जेम्को में आयोजित इस भव्य अमृत संचार कार्यक्रम ने यह साबित कर दिया कि गुरु का सिख बनने की राह आज भी लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
जहाँ आजकल की युवा पीढ़ी आधुनिकता में खो रही है, वहीं सिख धर्म के मूल्यों को अपनाने की यह प्रवृत्ति समाज के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
अमृतधारी बनने का अर्थ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेना नहीं, बल्कि इसे जीवनभर निभाने का संकल्प लेना है। यह कार्यक्रम न सिर्फ धार्मिक रूप से बल्कि सामाजिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें हमारी संस्कृति और जड़ों से जोड़े रखता है।
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