MGM Meeting: टाटा विस्थापितों का मालिकाना हक और लिज नवीकरण पर उठे गंभीर सवाल
MGM टुरीया बेड़ा में टाटा विस्थापितों की बैठक हुई, जहां मालिकाना हक और लिज नवीकरण पर चर्चा की गई। जानें, टाटा विस्थापितों के अधिकार और न्याय की उनकी लंबी यात्रा के बारे में।
19 जनवरी 2025 को टाटा विस्थापितों की समस्या पर MGM टुरीया बेड़ा में सिंहभूम जनजाति मूलवासी रैयत कल्याण परिषद की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई, जिसमें गोपाल मुर्मू की अध्यक्षता में टाटा विस्थापितों के हक की चर्चा की गई। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य था, मलिकाना हक (भूमि अधिकार) और टाटा लिज एग्रीमेंट (पट्टा नवीनीकरण) पर ध्यान केंद्रित करना।
क्या है मलिकाना हक और लिज एग्रीमेंट?
मलिकाना हक, एक प्रकार का कानूनी अधिकार होता है, जो भूमि मालिक को जमीन पर पूर्ण अधिकार प्रदान करता है। लिज एग्रीमेंट के तहत किसी भूमि को सीमित समय के लिए लीज पर दिया जाता है, जिसे बाद में नवीनीकरण की आवश्यकता होती है। लेकिन यहां सवाल यह है कि जब तक विस्थापित रैयतों को उनका हक नहीं मिलता, तब तक मलिकाना हक और लिज नवीकरण की बात करना कितना उचित है?
टाटा विस्थापितों का लंबा संघर्ष
टाटा के विस्थापितों ने अपनी भूमि के अधिकार की रक्षा के लिए कई सालों से संघर्ष किया है। इन विस्थापितों ने न केवल स्थानीय प्रशासन से बल्कि महामहिम राष्ट्रपति से भी न्याय की गुहार लगाई है। उनका आरोप है कि टाटा द्वारा बलपूर्वक अधिग्रहित भूमि का उचित मुआवजा नहीं दिया गया और भूमि के स्वामित्व को लेकर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। विस्थापन प्रमाण पत्र के लिए भी उन्होंने कई बार प्रयास किया, लेकिन उन्हें अभी तक न्याय नहीं मिल सका।
क्या कहना है नेताओं का?
बैठक में भाग लेने वाले प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की। प्रहलाद गोप, कन्हाय सिंह (ग्राम प्रधान), सुनील हेम्बरम, गणेश गोप, गोपी बोदरा, रेमो लामाय, दिनेश गोप, संजय हेम्बरम, पहाड़ सिंह और उत्तम प्रधान ने एक स्वर में कहा कि जब तक मूल रैयतों को उनका हक नहीं मिलता, तब तक मलिकाना हक और लिज नवीनीकरण पर चर्चा करना बेकार है। उनका मानना है कि यह न्याय का उल्लंघन है और विस्थापितों के अधिकारों को नजरअंदाज किया जा रहा है।
विस्थापितों के अधिकार की रक्षा की जरूरत
बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि टाटा विस्थापित जल्द ही जिला प्रशासन और मुख्यमंत्री से मिलकर एक पत्राचार करेंगे, जिसमें उनका प्रमुख उद्देश्य मलिकाना हक और लिज नवीनीकरण से पहले खुटकाटी रैयतों को न्याय दिलवाना होगा। इसके लिए एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही प्रशासन के पास अपनी आवाज उठाने जाएगा।
इतिहास में विस्थापन की भूमिका
भारत के विभिन्न हिस्सों में कई बार औद्योगिक क्षेत्रों के विस्तार के कारण हजारों लोगों को अपनी भूमि से बेदखल होना पड़ा है। सिंहभूम जिले में भी टाटा के औद्योगिक विस्तार के दौरान बहुत से लोग अपनी भूमि से विस्थापित हुए थे, लेकिन उनके पुनर्वास और मुआवजे का मामला आज भी लंबित है। इस तरह की घटनाएं भारतीय इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं, और इन विस्थापितों के संघर्षों ने कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए हैं, जिनके जवाब अभी तक नहीं मिले हैं।
आगे का रास्ता
इस बैठक के बाद, यह स्पष्ट है कि टाटा विस्थापितों की संघर्ष की दिशा सही है, लेकिन इसे और मजबूती की आवश्यकता है। टाटा द्वारा अधिग्रहित की गई भूमि के मालिकाना हक पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए, ताकि विस्थापितों को उनके कानूनी हक मिल सके। इसके साथ ही, लिज नवीनीकरण के सवाल को भी उठाया जाएगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन विस्थापितों को उनके अधिकार समय पर मिलें।
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