Saraikela Festival विवाद: छऊ नृत्य कलाकारों ने दी चेतावनी, प्रशासन पर उठाए सवाल!
झारखंड के ऐतिहासिक राजकीय चैत्र पर्व को लेकर छऊ नृत्य कलाकारों ने प्रशासन पर उठाए गंभीर सवाल! सम्मान और आर्थिक सहायता की मांग के बीच, क्या होगा इस बार का चैत्र पर्व विवादमुक्त? पढ़ें पूरी खबर।
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सारायकेला – झारखंड के ऐतिहासिक राजकीय चैत्र पर्व की तैयारियां शुरू हो गई हैं, लेकिन इस बार यह सिर्फ एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं रहेगा, बल्कि विवादों और मांगों का केंद्र बन चुका है। छऊ नृत्य कलाकारों और प्रशासन के बीच खींचतान बढ़ती जा रही है। कलाकारों का आरोप है कि प्रशासन छऊ महोत्सव की आड़ में उनकी कला और संस्कृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
छऊ कलाकारों की नाराजगी क्यों?
सोमवार को सरायकेला अनुमंडल पदाधिकारी एवं छऊ कला केंद्र के सचिव सदानंद महतो की अध्यक्षता में कलाकारों के साथ एक बैठक हुई। इस बैठक में चैत्र पर्व की तैयारियों पर चर्चा की गई, लेकिन बात सिर्फ आयोजन तक सीमित नहीं रही। कलाकारों ने अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की।
सम्मान और आर्थिक सहायता की मांग – कलाकारों ने स्पष्ट कहा कि पिछले साल उन्हें कोई उचित सम्मान नहीं दिया गया। इसलिए इस बार सम्मान और आर्थिक प्रोत्साहन राशि सुनिश्चित की जाए।
स्थानीय कलाकारों को प्राथमिकता मिले – कुछ कलाकारों ने मांग की कि केवल स्थानीय कलाकारों को ही बुलाया जाए, बाहरी कलाकारों के नाम पर बजट की बंदरबांट बंद हो।
राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त हो आयोजन – कलाकारों ने यह भी मांग की कि चैत्र पर्व का आयोजन पूरी तरह गैर-राजनीतिक रखा जाए, ताकि यह अपनी असली पहचान को बनाए रखे।
छऊ आर्टिस्ट एसोसिएशन ने साधा प्रशासन पर निशाना
छऊ आर्टिस्ट एसोसिएशन के संरक्षक मनोज चौधरी ने प्रशासन पर तीखा हमला बोलते हुए कहा,
"छऊ केवल नृत्य नहीं, यह हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति और हमारी पहचान है। प्रशासन इसे मनोरंजन का साधन न बनाए, बल्कि इसे संरक्षित करने के लिए गंभीर कदम उठाए।"
उन्होंने मांग की कि –
1961 में बने राजकीय छऊ कला केंद्र को फिर से व्यवस्थित किया जाए।
कलाकारों को उचित मंच और आर्थिक सहायता मिले।
छऊ महोत्सव की जगह परंपरागत "चैत्र पर्व" का आयोजन हो।
ग्रामीण नृत्य प्रतियोगिता को पारदर्शी तरीके से संचालित किया जाए।
कलाकारों को केवल 15,000 रुपये की जगह 50,000 रुपये प्रोत्साहन राशि दी जाए।
यूनेस्को द्वारा मिली पहचान, लेकिन सरकारी ध्यान नहीं!
छऊ नृत्य को यूनेस्को ने 'अमर्त्य कला' की श्रेणी में रखा है। कई कलाकारों को पद्मश्री और अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं। इसके बावजूद कलाकारों को उचित सम्मान और संसाधन नहीं मिल पा रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि इस वैश्विक कला को बचाने के लिए डॉक्यूमेंटेशन और शोध की जरूरत है।
प्रशासन को छऊ कलाकारों की जीविकोपार्जन के लिए आर्थिक सहायता देनी चाहिए।
जरूरत पड़ने पर बाहर से विशेषज्ञों को बुलाकर सेमिनार आयोजित किए जाने चाहिए।
दो साल से विवादों में घिरा है चैत्र पर्व
बता दें कि पिछले दो वर्षों से चैत्र पर्व विवादों में रहा है। हर बार प्रशासन और कलाकारों के बीच किसी न किसी मुद्दे पर टकराव होता है। इस बार भी ऐसा ही होता दिख रहा है।
क्या होगा आगे?
अब सवाल उठता है कि क्या प्रशासन कलाकारों की मांगों को पूरा करेगा, या फिर इस बार भी चैत्र पर्व को लेकर विवाद और असंतोष बना रहेगा? कलाकारों का कहना है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे विरोध प्रदर्शन करने से पीछे नहीं हटेंगे।
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