Jamshedpur Protest – सिलिकोसिस पीड़ितों का हाहाकार! मुआवजे के लिए सड़क पर उतरे सैकड़ों ग्रामीण
जमशेदपुर में सिलिकोसिस पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिलने पर मुसाबनी के सैकड़ों ग्रामीणों का प्रदर्शन, जानें सरकार पर उठ रहे सवाल और मजदूरों की दर्दनाक सच्चाई।

जमशेदपुर: क्या सरकार मजदूरों की पीड़ा सुनने के लिए तैयार नहीं? यही सवाल लेकर मुसाबनी के सैकड़ों ग्रामीण शुक्रवार को उपायुक्त कार्यालय के बाहर प्रदर्शन करने पहुंचे। इनका गुस्सा जायज था – सिलिकोसिस जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहे मजदूरों को न तो सही समय पर मुआवजा मिल रहा है और न ही उनकी जांच प्रक्रिया को आसान बनाया जा रहा है।
ग्रामीणों ने मुआवजा राशि को चार लाख से बढ़ाकर छह लाख करने की मांग की और सरकार को चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगे नहीं मानी गईं, तो वे उग्र आंदोलन करने को मजबूर होंगे। आखिर यह सिलिकोसिस बीमारी क्या है? सरकार की नीति इतनी लचर क्यों है? और मजदूरों को उनका हक कब मिलेगा? आइए, जानते हैं पूरी कहानी!
सिलिकोसिस – मजदूरों के लिए मौत का पैगाम!
सिलिकोसिस एक खतरनाक बीमारी है, जो मुख्य रूप से खदानों और पत्थर तोड़ने वाले मजदूरों को होती है।
- इस बीमारी का मुख्य कारण सिलिका (रेत या धूल के कण) का लंबे समय तक सांस के जरिए शरीर में जाना है।
- यह फेफड़ों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाता है, जिससे मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है।
- दर्दनाक सच्चाई यह है कि इलाज के अभाव में यह बीमारी पीड़ितों की मौत का कारण बन जाती है।
झारखंड के मुसाबनी, जादूगोड़ा, घाटशिला और जमशेदपुर के कई इलाकों में काम करने वाले मजदूर बड़ी संख्या में इस बीमारी की चपेट में आ चुके हैं।
सरकार से क्यों नाराज हैं ग्रामीण?
ग्रामीणों का आरोप है कि सरकार सिर्फ कागजों पर योजना बनाती है, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है।
- सिलिकोसिस पीड़ितों को मिलने वाला मुआवजा चार लाख रुपये है, जो इस बीमारी से लड़ने के लिए नाकाफी है।
- कई पीड़ितों की मौत हो चुकी है, लेकिन उनके परिवारों को अब तक मुआवजा नहीं मिला।
- जांच की प्रक्रिया इतनी जटिल और लंबी है कि मजदूरों को सही समय पर सहायता नहीं मिल पाती।
- सरकार की लापरवाही के कारण सिलिकोसिस पीड़ित और उनके परिवार बदहाली में जीने को मजबूर हैं।
इसलिए ग्रामीणों ने उपायुक्त को आठ सूत्री मांग पत्र सौंपकर मांग की कि मुआवजा राशि बढ़ाई जाए और जांच प्रक्रिया को आसान बनाया जाए।
प्रदर्शन के दौरान गूंजे यह बड़े सवाल!
प्रदर्शन के दौरान ग्रामीणों ने सरकार से कुछ तीखे सवाल किए:
- जब मजदूरों की जान जा रही है, तो सरकार कब जागेगी?
- मुआवजा देने में इतनी देरी क्यों हो रही है?
- जिनकी मौत हो गई, उनके परिवारों को मदद कब मिलेगी?
- सरकार सिलिकोसिस पीड़ितों के इलाज के लिए क्या कदम उठा रही है?
इन सवालों का जवाब प्रशासन के पास नहीं था, लेकिन ग्रामीणों का साफ कहना था कि अगर जल्द से जल्द उनकी मांगे पूरी नहीं हुईं, तो वे बड़े आंदोलन के लिए तैयार हैं।
सिलिकोसिस पीड़ितों का इतिहास – क्यों नहीं मिल रहा है इंसाफ?
झारखंड के कई जिलों में मजदूर पीढ़ियों से खदानों और पत्थर तोड़ने के काम में लगे हुए हैं।
- 1960 के दशक से अब तक हजारों मजदूर इस बीमारी के कारण दम तोड़ चुके हैं।
- 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह सिलिकोसिस पीड़ितों के लिए ठोस कदम उठाए, लेकिन आज भी हालात जस के तस हैं।
- 2019 में झारखंड सरकार ने सिलिकोसिस पीड़ितों के लिए मुआवजा योजना शुरू की थी, लेकिन लाभार्थियों तक सही समय पर पैसा नहीं पहुंच पा रहा।
ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार समय रहते कदम उठाए, तो मजदूरों को इस जानलेवा बीमारी से बचाया जा सकता है।
आगे क्या होगा? आंदोलन की चेतावनी!
- अगर जल्द ही सरकार ने मुआवजा राशि नहीं बढ़ाई और प्रक्रिया को सरल नहीं किया, तो ग्रामीण उग्र आंदोलन करेंगे।
- इसके लिए वे पूरे झारखंड में जनजागरण अभियान चलाएंगे।
- साथ ही, प्रशासन को घेरकर अनिश्चितकालीन धरना देने की भी योजना बनाई जा रही है।
ग्रामीणों की मांगें जायज हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार उनकी सुनेगी या यह प्रदर्शन भी बाकी आंदोलनों की तरह कागजों में दफ्न हो जाएगा?
सिलिकोसिस एक गंभीर बीमारी है, जिसने हजारों मजदूरों की जान ले ली है। लेकिन सरकार की नीतियों में पारदर्शिता की कमी और सुस्त रवैया मजदूरों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है।
अब देखना यह होगा कि क्या सरकार मजदूरों की आवाज सुनेगी या फिर उन्हें आंदोलन की राह पकड़नी पड़ेगी?
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