Jamshedpur Loot: बालू के धंधे में डूबा हाईवे, खुलेआम चल रही 'रेत की लूट', सरकारी विभाग आंखें मूंदे!

जमशेदपुर में नेशनल हाईवे बना बालू माफिया का अड्डा! खुलेआम हो रहा अवैध खनन और ट्रांसपोर्ट, लाखों का रोजाना नुकसान, लेकिन विभाग चुप। जानिए पूरा मामला।

Apr 9, 2025 - 15:28
Apr 9, 2025 - 15:52
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Jamshedpur Loot: बालू के धंधे में डूबा हाईवे, खुलेआम चल रही 'रेत की लूट', सरकारी विभाग आंखें मूंदे!
Jamshedpur Loot: बालू के धंधे में डूबा हाईवे, खुलेआम चल रही 'रेत की लूट', सरकारी विभाग आंखें मूंदे!

जमशेदपुर (झारखंड): अगर आप जमशेदपुर से गुजर रहे हैं और हाईवे पर ट्रैक्टर, डम्पर या हाइवा पर बालू लदा देखकर आपको लगे कि यह कोई सरकारी सप्लाई है—तो ज़रा ठहरिए। हकीकत इससे कहीं ज्यादा चौंकाने वाली है।

यह हाईवे अब रेत के काले कारोबार का 'सुपरहाईवे' बन चुका है। बालू माफिया खुलेआम अवैध परिवहन कर रहे हैं और संबंधित विभाग मूकदर्शक बने हुए हैं। सरकार को हर दिन लाखों रुपये का राजस्व नुकसान हो रहा है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सन्नाटा है।

कहानी सिर्फ रेत की नहीं, करोड़ों के माफिया नेटवर्क की है

यह कोई छोटा-मोटा धंधा नहीं है। बालू के एक ट्रैक्टर की कीमत खुले बाजार में 2800 से 3500 रुपये है। अनुमान है कि प्रतिदिन सैकड़ों ट्रैक्टर और डम्पर बालू लेकर शहर के अंदर दाखिल हो रहे हैं। बिल्डर से लेकर आम नागरिक तक इस सप्लाई चैन से जुड़े हैं, और बालू माफिया इसी "डिमांड" का फायदा उठा रहे हैं।

कैसे चलता है ये रैकेट? नो इंट्री की चालाकी, रात का खेल

नो इंट्री के दौरान बड़े वाहन रुकते हैं, लेकिन रात होते ही डम्पर और हाइवा हाईवे से होकर बालू लेकर निकल पड़ते हैं। वहीं, घर निर्माण कराने वाले लोग दिन में ट्रैक्टर से बालू मंगवा लेते हैं जो मेन रोड से न जाकर गलियों और वैकल्पिक रास्तों का इस्तेमाल करते हैं।

इन रास्तों की पहचान माफिया द्वारा पहले ही कर ली जाती है। क्या यह सिर्फ संयोग है या ‘सिस्टम की सेटिंग’? जवाब आप समझ सकते हैं।

इतिहास गवाह है: झारखंड में बालू घोटाले कोई नई बात नहीं

झारखंड में अवैध बालू खनन का इतिहास लंबा है। 2017 में रांची और साहिबगंज जैसे जिलों में इसी तरह के बालू घोटाले सामने आए थे, जिसमें अधिकारियों की मिलीभगत का पर्दाफाश हुआ था।

2019 में भी जमशेदपुर के कुछ क्षेत्रों में अवैध खनन पर कार्रवाई हुई थी, लेकिन नतीजा? कुछ महीनों की चुप्पी और फिर दोबारा वही खेल।

कानून का डर न माफिया को, न सिस्टम को!

सरकार ने बालू खनन पर नियंत्रण के लिए नियम बनाए हैं, जैसे बालू की ई-नीलामी, रॉयल्टी भुगतान और परमिट व्यवस्था। लेकिन ये सारी प्रक्रियाएं माफिया के लिए केवल "फॉर्मेलिटी" बन चुकी हैं। बिना परमिट, बिना रसीद, बिना कोई दस्तावेज़—बालू का कारोबार जारी है।

प्रशासन क्यों चुप? जनता का सवाल – "आखिर किसकी शह पर चल रहा ये सब?"

स्थानीय लोगों का कहना है कि ट्रैफिक पुलिस, खनन विभाग और जिला प्रशासन सब जानते हैं कि कहां-कहां बालू डंप किया जाता है, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती। वजह क्या है? क्या सिस्टम के कुछ हिस्से इस खेल में साझेदार हैं?

बिल्डरों की चुप्पी और जनता की मजबूरी

बड़े बिल्डर ज्यादा दाम देकर बालू खरीद रहे हैं और छोटी निर्माण योजनाओं वाले लोग महंगे दाम चुकाकर ट्रैक्टर से बालू मंगवा रहे हैं। मजबूरी ये कि वैध सप्लाई का इंतजार करें तो घर ही अधूरा रह जाए। यही वो गैप है जिसका फायदा माफिया उठा रहे हैं।

बालू सिर्फ मिट्टी नहीं, काले कारोबार की जड़ है

जमशेदपुर का यह मामला एक बार फिर दिखाता है कि जब सिस्टम सो जाता है, तो माफिया जाग उठते हैं। बालू माफिया का यह नेटवर्क सिर्फ अवैध कमाई नहीं, बल्कि प्रशासनिक विफलता का आईना है।
अब देखना ये है कि क्या सरकार इस 'बालू युद्ध' में कोई निर्णायक कदम उठाती है या फिर ये रेत यूं ही फिसलती रहेगी?

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Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।