Baharagora Protest: नदी में माफिया राज! ग्रामीणों ने उठाई आवाज, कहा – नहीं सहेंगे अब बालू की लूट
बहरागोड़ा की सुवर्णरेखा नदी में अवैध बालू खनन ने मचाई तबाही! प्रशासन की कार्रवाई नाकाम, ग्रामीणों ने चेताया – अब चुप नहीं बैठेंगे। जानिए पूरा मामला।

बहरागोड़ा (पूर्वी सिंहभूम): सुवर्णरेखा नदी की लहरों में आजकल सिर्फ पानी नहीं, बालू की अवैध लूट का शोर भी गूंजता है। बहरागोड़ा प्रखंड के कई नदी घाटों से बेधड़क खनन हो रहा है, जिससे माफिया मालामाल हो रहे हैं, और आम ग्रामीण बेहाल। प्रशासन ने भले ही समय-समय पर कार्रवाई का दावा किया हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
प्रशासन बनाम माफिया: किसकी चलेगी?
प्रशासन ने कई बार छापेमारी अभियान चलाकर बालू डंप को जब्त किया, लेकिन बालू माफिया हर बार बच निकलते हैं। यह लड़ाई अब सीधे तौर पर सिस्टम बनाम सिंडिकेट बन गई है। एक तरफ सरकारी आदेश, दूसरी ओर ट्रैक्टरों की कतार और रातभर चलता अवैध परिवहन।
इतिहास गवाह है इस अवैध धंधे का
झारखंड में अवैध बालू खनन कोई नई कहानी नहीं। 2015 से लेकर अब तक कई बार सरकार ने ई-नीलामी और ऑनलाइन परमिट सिस्टम लागू कर कड़ा रुख दिखाने की कोशिश की, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। बहरागोड़ा का इलाका विशेष रूप से संवेदनशील माना जाता रहा है, क्योंकि यहां नदी घाट सीधे सीमावर्ती इलाकों से जुड़े हैं, जिससे निगरानी और भी मुश्किल हो जाती है।
ग्रामीणों की चेतावनी – अब बर्दाश्त नहीं
बुधवार को पाथरी पंचायत के बामडोल गांव के दर्जनों ग्रामीणों ने अंचल कार्यालय पहुंचकर जमकर विरोध दर्ज कराया। चिन्मय घोष, अंशुमान साव, रिंकू साव और अर्धेन्दू घोष जैसे स्थानीय नेताओं ने अंचल अधिकारी को ज्ञापन सौंपा, जिसमें साफ तौर पर कहा गया – "रात को सो नहीं सकते, दिन में चल नहीं सकते।"
ग्रामीणों के अनुसार, ट्रैक्टर और अन्य वाहनों की आवाजाही इतनी बढ़ गई है कि घरों की दीवारें तक हिलने लगी हैं। साथ ही नदी तट की प्राकृतिक संरचना भी बिगड़ रही है, जिससे भविष्य में बाढ़ जैसे खतरे बढ़ सकते हैं।
माफिया के आगे बेबस नियम
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार बालू ट्रैक्टर चालकों को रोका, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। कानून नाम की चीज़ यहां ट्रैक्टर की रफ्तार के नीचे कुचलती जा रही है।
अंचल अधिकारी ने दिया आश्वासन, लेकिन...
CO ने ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि जल्द से जल्द इस अवैध खनन पर कार्रवाई की जाएगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह आश्वासन भी बाकी घोषणाओं की तरह फाइलों में ही दफन हो जाएगा?
क्या वाकई खत्म होगा बालू का ये खेल?
इस पूरे मामले ने एक बार फिर प्रशासनिक नाकामी को उजागर कर दिया है। सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकार इस बार वाकई ठोस कदम उठाएगी? या फिर बालू माफिया यूं ही जमीन और नदी दोनों को लूटते रहेंगे?
बहरागोड़ा की कहानी सिर्फ बालू की नहीं, ये सिस्टम की साख की भी है। जहां ग्रामीणों को अब खुद मोर्चा संभालना पड़ रहा है, वहां सरकार की चुप्पी सबसे बड़ा सवाल बन चुकी है। अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाले दिनों में विरोध और बड़ा रूप ले सकता है।
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