India Reform के नाम पर क्या वाकई सुधार हो रहा है जेलों में? जानिए सच्चाई!
भारत में जेल सुधार की असल स्थिति पर एक चिंताजनक सच सामने आया है। जानिए क्यों सरकार और प्रशासन सुधार नहीं चाहते, और क्या बदलाव की आवश्यकता है।
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भारत में जेल सुधार की दिशा में सरकार की ओर से कई योजनाएँ और नीतियाँ बनाई गईं हैं, लेकिन क्या कभी यह योजनाएँ सफल हो पाई हैं? जेलों में कैदियों का सुधार और पुनर्वास एक ऐसा मुद्दा बन चुका है, जिस पर सरकार और प्रशासन दोनों ही कभी गंभीरता से ध्यान नहीं देते। यदि हम इन योजनाओं की सच्चाई को समझें, तो यह साफ़ हो जाता है कि सिस्टम में सुधार की कोई ठोस इच्छा नहीं है।
क्या है असली वजह?
भारत में जेलों का मुख्य उद्देश्य केवल सजा देना नहीं था, बल्कि यह था कि कैदी अपनी सजा काटते हुए पुनर्वासित हो और समाज में लौटकर एक आम नागरिक की तरह जीवन व्यतीत करें। लेकिन यह सिद्धांत कहीं खो गया है। अतुल मलिकराम, एक लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार, ने कई जेल अधिकारियों और पुलिस से बातचीत के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि असल में, सरकार और प्रशासन इस सुधार की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाना चाहते।
अधिकारियों का मानना है कि एक बार जेल में आने के बाद कोई व्यक्ति सुधार नहीं सकता। इसके बजाय, उनका यह विचार है कि जेल में रहने वाले कैदी अपराधी प्रवृत्तियों में ही रहेंगे, और जब वे बाहर आएंगे, तो समाज और पुलिस के लिए समस्याएँ पैदा करेंगे। ऐसे में जेल अधिकारियों के अनुसार, सुधार के बजाय दंडात्मक कदम उठाना ज्यादा प्रभावी समझा जाता है।
जेल सुधार की दिशा में सरकारी उदासीनता
सरकार की तरफ से पुनर्वास की योजनाएँ तो बनाई जाती हैं, लेकिन असल में इन्हें लागू करने में कोई सच्ची इच्छाशक्ति नहीं दिखती। जब सुधारात्मक कदमों को कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता, तो इसका असर कैदियों की मानसिकता और उनके भविष्य पर सीधा पड़ता है। इसी वजह से कैदी अपनी सजा पूरी करने के बाद पुनः अपराध की दुनिया में लौट आते हैं, क्योंकि उनके पास कोई ऐसा मंच नहीं होता, जो उन्हें समाज में सही तरीके से पुनः स्थापित कर सके।
यदि प्रशासन और जेल अधिकारी सुधार की दिशा में कदम बढ़ाते, तो शायद ये कैदी समाज का एक उपयोगी हिस्सा बन सकते थे। लेकिन जब सुधार की सोच ही न हो, तो बदलाव की उम्मीद रखना मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि जेल व्यवस्था अब सजा देने का केवल एक उपकरण बनकर रह गई है, बजाय इसके कि यह सुधारात्मक प्रक्रिया का हिस्सा बने।
क्या सुधार संभव है?
भारत की जेल व्यवस्था में सुधार लाने के लिए सबसे पहले प्रशासन की मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है। एक बार जब हम जेलों को केवल सजा देने के तरीके के रूप में देखना बंद कर देंगे और इसे सुधार के एक माध्यम के रूप में अपनाएंगे, तब ही सच्चे बदलाव की शुरुआत होगी। पुनर्वास योजनाएँ, जो कैदियों को समाज में फिर से समाहित करने के लिए बनाई जाती हैं, उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करना ज़रूरी है।
सुधारात्मक कदमों में शिक्षा, कौशल विकास, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ और कैदियों के सामाजिक जुड़ाव के अवसर प्रदान करना शामिल होना चाहिए। जब जेलों में सुधार और पुनर्वास की दिशा में गंभीर प्रयास किए जाएंगे, तो अपराध की दर में कमी आएगी, और समाज भी ज्यादा सुरक्षित और सशक्त होगा।
सरकार को समझने की आवश्यकता
आज, भारत में बढ़ते अपराधों को देखते हुए, जेल सुधार की आवश्यकता पहले से कहीं ज्यादा महसूस हो रही है। केवल कैदियों को सजा देने से अपराधों की समस्या हल नहीं हो सकती, बल्कि इसका वास्तविक समाधान सुधार और पुनर्वास में ही छुपा है। यदि सरकार और प्रशासन इस पहलू को गंभीरता से समझें और सुधारात्मक कदम उठाएँ, तो न केवल अपराध की दर में कमी आएगी, बल्कि पूरे समाज का माहौल बदल सकता है।
यदि हम एक अपराध मुक्त समाज की उम्मीद करते हैं, तो हमें जेलों के सुधारात्मक पहलू को समझना होगा और उसे लागू करना होगा। यही तरीका है जो हमें और हमारे समाज को बेहतर दिशा में ले जा सकता है। लेकिन जब तक इस दिशा में वास्तविक और ईमानदार प्रयास नहीं किए जाते, तब तक हमें सुधार की उम्मीद करना व्यर्थ होगा।
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