हूल दिवस: एक युद्ध, विद्रोह नहीं | हूल दिवस क्या है | Hul diwas
हूल दिवस: एक युद्ध, विद्रोह नहीं | हूल दिवस क्या है | हूल का वास्तविक अर्थ और आज की जरूरत | हूल दिवस की वर्तमान प्रासंगिकता
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हूल दिवस क्या है?
हर साल 30 जून को हूल दिवस मनाया जाता है, जो संताल परगना में 1855 में आदिवासियों द्वारा शुरू किए गए एक ऐतिहासिक युद्ध की याद में मनाया जाता है। यह दिवस उनके संघर्ष और बलिदान को सम्मानित करने के लिए है।
हूल दिवस का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
हूल: युद्ध का आह्वान
हूल दिवस पर गोस्सनर कॉलेज की प्रोफेसर ईवा मार्ग्रेट हांसदा ने बताया कि यह विद्रोह नहीं बल्कि युद्ध था। आदिवासी स्थानीय महाजनों और जमींदारों की टैक्स वसूली से परेशान थे और उन्होंने अपनी जमीन, संस्कृति और परंपराओं की रक्षा के लिए संघर्ष किया।
सिदो-कान्हू, चांद-भैरव की अगुवाई में युद्ध
1855 में सिदो-कान्हू और चांद-भैरव के नेतृत्व में 10,000 आदिवासी साहिबगंज में जुटे थे। उनका उद्देश्य कोलकाता के लाट साहब से मिलकर स्थानीय महाजनों और जमींदारों की टैक्स वसूली की शिकायत करना था।
आदिवासियों की समस्याएं और संघर्ष
टैक्स वसूली की समस्या
प्रोफेसर ईवा मार्ग्रेट हांसदा ने कहा कि आदिवासी स्थानीय महाजनों और जमींदारों की टैक्स वसूली से परेशान थे। उन्हें जबरन रोकने की कोशिश के दौरान आंदोलन हिंसक हो गया और अंग्रेजों को पहली बार मार्शल लॉ लागू करना पड़ा।
महिलाओं का योगदान
सोशल एक्टिविस्ट और कवयित्री वंदना टेटे ने कहा कि हूल में महिलाओं का योगदान महत्वपूर्ण था, लेकिन उन्हें वो मान्यता नहीं मिली। महिलाओं ने रसद पहुंचाने, संदेश पहुंचाने जैसे महत्वपूर्ण कार्य किए थे।
पुरखों की जमीन पर किराया वसूली
झारखंड की पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव ने कहा कि हूल इसलिए हुआ क्योंकि हमारे पुरखों की जमीन पर हमसे किराया मांगा जा रहा था। जल-जंगल और जमीन आदिवासियों का हक है, इससे उन्हें हटाया नहीं जा सकता।
हूल का वास्तविक अर्थ और आज की जरूरत
हूल का वास्तविक अर्थ
सामाजिक कार्यकर्ता रतन तिर्की ने कहा कि हूल का वास्तविक अर्थ आह्वान है। जिस वजह से हूल हुआ था, वे कारण आज भी मौजूद हैं। इसलिए हूल की जरूरत सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक हर क्षेत्र में है।
परिवर्तन की आवश्यकता
रतन तिर्की ने कहा कि हूल हुआ था जमीन और जंगल बचाने के लिए लेकिन हम उसे बचा नहीं पा रहे हैं, इसलिए हूल की जरूरत है क्योंकि परिवर्तन होना बहुत जरूरी है।
हूल का महत्व और आज की स्थिति
पूर्व विधायक शिव शंकर उरांव ने कहा कि हूल का अर्थ है आह्वान। आदिवासियों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हूल किया। 200 साल के अंग्रेजों के शासन में आदिवासियों ने कभी भी उनकी दासता को स्वीकार नहीं किया।
हूल दिवस की वर्तमान प्रासंगिकता
हूल दिवस का महत्व आज
आज भी हूल दिवस का महत्व बना हुआ है। यह दिवस आदिवासियों के संघर्ष और उनके बलिदान को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है।
आदिवासी समाज की एकजुटता
हूल दिवस आदिवासी समाज की एकजुटता और उनके अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक है। यह दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपने अधिकारों के लिए हमेशा संघर्ष करना चाहिए।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1: हूल दिवस क्या है?
Ans: हूल दिवस संताल परगना में 1855 में शुरू किए गए आदिवासियों के ऐतिहासिक युद्ध की याद में मनाया जाता है।
2: हूल का क्या अर्थ है?
Ans: हूल का अर्थ है आह्वान। यह एक युद्ध था, विद्रोह नहीं।
3: हूल दिवस कब मनाया जाता है?
Ans: हूल दिवस हर साल 30 जून को मनाया जाता है।
4: हूल दिवस का इतिहास क्या है?
Ans: हूल दिवस का इतिहास 1855 से जुड़ा है, जब आदिवासियों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया।
5: हूल दिवस का महत्व क्या है?
Ans: हूल दिवस आदिवासियों के संघर्ष और उनके बलिदान को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है।
6: हूल दिवस का वर्तमान प्रासंगिकता क्या है?
Ans: हूल दिवस का महत्व आज भी बना हुआ है, क्योंकि यह आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक है।
7:संथाल विद्रोह कब हुआ?
Ans: संथाल विद्रोह 1855-56 में हुआ था। संथाल झारखंड राज्य में केंद्रित एक आदिवासी समूह है। यह भारत में हुआ पहला किसान विद्रोह था। इस विद्रोह का श्रेय 1793 के स्थायी भूमि बंदोबस्त को दिया जा सकता है।
8: संथाल विद्रोह का दूसरा नाम क्या है?
Ans: संथाल विद्रोह (जिसे सोंथाल विद्रोह या संथाल हूल के नाम से भी जाना जाता है), संथालों द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी (ईआईसी) और जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ वर्तमान झारखंड और पश्चिम बंगाल में एक विद्रोह था।
9: संथाल विद्रोह के नेता कौन थे?
Ans: 30 जून 1855 को दो संथाल विद्रोही नेताओं सिद्धू और कान्हू मुर्मू ने लगभग 60,000 संथालों को संगठित किया और ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह की घोषणा की। सिद्धू मुर्मू ने विद्रोह के दौरान समानांतर सरकार चलाने के लिए लगभग दस हजार संथालों को इकट्ठा किया था।
10: संथाल और पहाड़िया कौन थे?
Ans: इतिहास बताता है कि पहाड़िया राजमहल पहाड़ियों के मूल निवासी थे । अंग्रेज़ों ने पहाड़िया के हिंसक विरोध का मुकाबला करने के लिए संथालों को इस क्षेत्र में लाया। पहाड़िया और संथालों के बीच हमेशा से शत्रुतापूर्ण संबंध रहे हैं और उनके आक्रमण को नियंत्रित करने के लिए कई पूर्व सैनिक इस क्षेत्र में बस गए।
11: संथाल विद्रोह क्या होता है?
Ans: संथाल हुल सिर्फ पहला ब्रिटिश विरोधी विद्रोह नहीं था, यह सभी प्रकार के शोषण के खिलाफ था 19वीं सदी का विद्रोह वास्तव में भारतीय 'उच्च' जाति के जमींदारों, साहूकारों, व्यापारियों और पुलिस अधिकारियों द्वारा शोषण के खिलाफ एक आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था, जो संथाल जीवन के आर्थिक क्षेत्र पर हावी हो गए थे।
12: संथाल का देवता कौन है?
Ans: संथाली आदिवासियों के आराध्य देव मारांग बुरू हैं। मारांग का अर्थ बड़ा व बुरू का मतलब पहाड़ है। यानी बड़े पहाड़ पर रहने वाले देवता।
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