नियम सिर्फ जनता के लिए? 19 साल पुरानी सरकारी गाड़ी सड़कों पर बगैर फिटनेस और इंश्योरेंस के दौड़ रही!

जिला प्रशासन द्वारा इस्तेमाल की जा रही सरकारी गाड़ी बिना फिटनेस, इंश्योरेंस और पॉल्यूशन सर्टिफिकेट के सड़कों पर दौड़ रही है। जानें कैसे ये गाड़ी कानून से ऊपर साबित हो रही है।

Oct 5, 2024 - 22:35
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नियम सिर्फ जनता के लिए? 19 साल पुरानी सरकारी गाड़ी सड़कों पर बगैर फिटनेस और इंश्योरेंस के दौड़ रही!
नियम सिर्फ जनता के लिए? 19 साल पुरानी सरकारी गाड़ी सड़कों पर बगैर फिटनेस और इंश्योरेंस के दौड़ रही!

पूर्वी सिंहभूम, 5 अक्टूबर 2024: क्या सरकारी अधिकारी नियमों से ऊपर हैं? ऐसा ही कुछ सवाल अधिवक्ता ज्योतिर्मय दास ने उठाया है। हाल ही में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है, जिसमें जिला प्रशासन द्वारा उपयोग की जा रही सरकारी गाड़ी (नंबर JH01L 3768) बिना फिटनेस, इंश्योरेंस और पॉल्यूशन सर्टिफिकेट के धड़ल्ले से सड़कों पर दौड़ रही है। सोचिए, अगर आपकी गाड़ी फिटनेस या इंश्योरेंस के बिना सड़क पर दिख जाए तो क्या होता है? चंद मिनटों में चालान कट जाता है और पुलिस की सख्त नजरें आपको घूरने लगती हैं। पर प्रशासन की गाड़ी तो जैसे इन सबसे अछूती है।

"19 साल पुरानी गाड़ी और अब तक फिट!"

जब आपने आखिरी बार अपनी गाड़ी का फिटनेस सर्टिफिकेट चेक किया था, तब क्या हुआ था? अगर आपने समय पर न कराया होता, तो आपको भारी जुर्माना और नियमों की पाठशाला देखने को मिलती। लेकिन यहाँ एक सरकारी गाड़ी है, जो पूरे 19 साल पुरानी है और फिटनेस, इंश्योरेंस या पॉल्यूशन सर्टिफिकेट जैसी मामूली चीजों को नजरअंदाज कर रही है। अब सवाल ये है कि क्या ये गाड़ी किसी सुपरहीरो की गाड़ी है, जिसे किसी नियम की परवाह नहीं?

ज्योतिर्मय दास ने इस मामले पर सोशल मीडिया पर जोरदार सवाल उठाए हैं। उनका सीधा सवाल था, "जब आम जनता पर नियमों का पहाड़ गिराया जाता है, तो क्या ये नियम सरकारी अधिकारियों पर लागू नहीं होते?" ट्वीट करते हुए उन्होंने तंज कसा, "क्या नियम सिर्फ जनता के लिए हैं? सरकारी गाड़ियों को स्पेशल ट्रीटमेंट क्यों?"

"कानून का खेल: जनता पर सख्ती, अधिकारियों पर मेहरबानी"

यह मामला तब और गंभीर हो जाता है जब हम सोचते हैं कि प्रशासन हर दिन हजारों वाहनों की जांच करता है, चालान काटता है, और जनता से उम्मीद करता है कि वे हर नियम का पालन करें। वहीं, प्रशासन खुद अपने नियमों का पालन नहीं कर रहा। वाह! क्या ये है जनता की सेवा? क्या ये वही प्रशासन है, जो हमारे लिए काम कर रहा है? या फिर इनके लिए अलग ही नियम किताब में दर्ज हैं?

आप सोच रहे होंगे कि इतने बड़े मुद्दे पर प्रशासन क्या कर रहा है? क्या किसी ने इस गाड़ी की हालत का जायजा लिया? क्या ये मामला किसी की नजर में आया भी है? दरअसल, ये सवाल हर जागरूक नागरिक को परेशान कर सकता है। खासकर जब सरकारी गाड़ियों की जिम्मेदारी का ऐसा मामला सामने आता है, जो कानून से ऊपर नजर आता है।

"क्या होगा अब?"

इस गाड़ी के 19 साल पुराने होने के बावजूद इसका फिटनेस सर्टिफिकेट खत्म हो चुका है, पर ये सड़क पर धड़ल्ले से चल रही है। मामला सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय और राज्य के मंत्री दीपक बिरुआ तक पहुंच चुका है। अब देखना होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती है। सवाल ये है कि क्या ये गाड़ी फिर से सड़कों पर नजर आएगी या इसे भी जनता की गाड़ियों की तरह कड़ा दंड मिलेगा?

"संदेश क्या है?"

इस तरह की घटनाएं जनता के बीच गलत संदेश भेजती हैं। जब नियमों की पालना खुद प्रशासन ही नहीं करता, तो जनता से इसकी उम्मीद कैसे की जा सकती है? अधिवक्ता ज्योतिर्मय दास ने जो सवाल उठाए हैं, वो हमारे समाज की असलियत दिखाते हैं – कि किस तरह से कानून के अलग-अलग मापदंड होते हैं, चाहे वो आम जनता हो या प्रशासन।

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।