Gorakhpur: अधिवक्ता सुशील चंद्र साहनी ने भानू प्रताप पाण्डेय पर गंभीर आरोप लगाए
गोरखपुर में अधिवक्ता सुशील चंद्र साहनी ने बार एसोशिएशन के अध्यक्ष पर लगाया गंभीर आरोप। जानें क्या है पूरा मामला और क्यों उन्होंने उच्च न्यायालय से इस मनमानी का विरोध करने की धमकी दी।
गोरखपुर, 27 नवम्बर 2024। अधिवक्ता सुशील चंद्र साहनी, जो निषाद युवा वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं, ने आज एक प्रेस वार्ता में गोरखपुर बार एसोसिएशन के सिविल अध्यक्ष भानू प्रताप पांडे पर गंभीर आरोप लगाए। सुशील चंद्र साहनी ने कहा कि भानू प्रताप पांडे ने उनकी व्यक्तिगत और पेशेवर प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से अधिवक्ता विरोधी कार्यों में लिप्त होने का आरोप लगाया और उन्हें 23 नवम्बर 2024 को सिविल कोर्ट गोरखपुर की सदस्यता से अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया।
सुशील चंद्र साहनी ने कहा कि उन्हें 23 नवम्बर को एक नोटिस प्राप्त हुआ, जिसमें उनके खिलाफ यह आरोप लगाए गए थे कि वे अधिवक्ता विरोधी कार्यों में शामिल हैं। हालांकि, उन्होंने 25 नवम्बर 2024 को भानू प्रताप पांडे और मंत्री गिरिजेश मणि त्रिपाठी से इस आरोप का स्पष्टीकरण मांगा था, लेकिन अभी तक किसी प्रकार का जवाब नहीं मिला है।
क्या है पूरा मामला?
सुशील चंद्र साहनी के अनुसार, यह सब रंजिश और व्यक्तिगत दुश्मनी का परिणाम है। उन्होंने आरोप लगाया कि भानू प्रताप पांडे और उनके साथियों ने अधिवक्ता अब्दुल बहाक, अधिवक्ता जावेद अहमद, अधिवक्ता अशोक साहनी, अधिवक्ता दिलीप सिंह, और अधिवक्ता राकेश गिरी के मामलों में नकली पैरवी करने के लिए पैसे लिए और मामले को मनमाने तरीके से हल करने की कोशिश की।
सुशील चंद्र साहनी ने यह भी बताया कि जब वे साधारण सभा की बैठक में भाग लेने के लिए बार एसोसिएशन गए थे, तब उन्हें महको बार-सभागार में प्रवेश नहीं दिया गया, जबकि वे वहां मौजूद थे। इस पर भी उन्होंने सिविल अध्यक्ष भानू प्रताप पांडे से स्पष्टीकरण मांगा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
क्या है इसके पीछे की राजनीति?
गोरखपुर के सिविल कोर्ट में यह मामला केवल एक व्यक्तिगत रंजिश तक सीमित नहीं दिखता। अधिवक्ता सुशील चंद्र साहनी का आरोप है कि भानू प्रताप पांडे का उद्देश्य केवल उनकी व्यक्तिगत छवि को धूमिल करना था। उनके अनुसार, यह सब कचहरी के कामकाज में मनमानी करने की कोशिश की जा रही है, जिससे कानूनी पेशेवरों के बीच अव्यवस्था फैल सके।
इस बीच, साहनी ने यह भी घोषणा की कि वे इस मामले को लेकर उत्तर प्रदेश बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया से शिकायत करेंगे। उनका कहना था कि इस मनमानी और अधिकारों का हनन किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं किया जाएगा और इसका विरोध हर स्तर पर किया जाएगा।
क्यों है यह मामला महत्वपूर्ण?
यह मामला केवल गोरखपुर के कानूनी पेशेवरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे उत्तर प्रदेश और उससे आगे के बार एसोसिएशनों को प्रभावित कर सकता है। अधिवक्ता की सदस्यता का निलंबन, अधिवक्ता विरोधी कार्य और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा पर हमला जैसे गंभीर आरोपों को लेकर पूरे कानूनी समुदाय में हलचल मच गई है।
अधिवक्ता सुशील चंद्र साहनी का कहना है कि इस तरह के आरोपों का कानूनी समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है और इसलिए इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। अगर इस मामले का उचित समाधान नहीं मिलता, तो यह पूरे प्रदेश में कानूनी व्यवस्था को चुनौती दे सकता है।
गोरखपुर के सिविल कोर्ट में चल रहे इस विवाद ने कानूनी पेशे की एक नई दिशा को जन्म दिया है। अगर जल्दी कोई समाधान नहीं निकलता है, तो यह मामला केवल एक स्थानीय विवाद से बढ़कर पूरे राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी समाज को प्रभावित कर सकता है। अधिवक्ता सुशील चंद्र साहनी और भानू प्रताप पांडे के बीच का यह टकराव अब कानूनी न्याय और व्यक्तिगत सम्मान के सवालों तक जा पहुंचा है।
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