ग़ज़ल - 3 - शफ़ीक़ रायपुरी, बस्तर , छत्तीसगढ़

जो क़ैद अपनी ज़ात की  तन्हाईयों में था वो भी समझ रहा था कि गहराईयों में था......

Aug 24, 2024 - 17:00
Aug 24, 2024 - 17:03
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ग़ज़ल - 3 - शफ़ीक़ रायपुरी, बस्तर , छत्तीसगढ़
ग़ज़ल - 3 - शफ़ीक़ रायपुरी, बस्तर , छत्तीसगढ़

ग़ज़ल 

जो क़ैद अपनी ज़ात की  तन्हाईयों में था
वो भी समझ रहा था कि गहराईयों में था

इक मेहरे-नीमरोज़ था इक चौदहवीं का चाँद
 किस  दर्जा  इख़्तिलाफ़  मिरे  भाईयों में था

इस   का   नहीं   मलाल   तमाशा   बने  रहे
 ग़म तो ये है कि वो भी  तमाशाईयों में था

ख़ुद - मतलबी के राग ने बेलुत्फ़  कर दिया 
वरना मज़ा  ख़ुलूस  की  शइनाईयों  में  था

मैं  यूं  सिराते - कर्ब  से  हँसता  गुज़र  गया
 तेरा  ख़याल  हौसला  अफ‌ज़ाईयों  में  था

अब क्या करें जो दिल पे किसी के लगा हो ज़ख़्म 
निश्तर  हमारी  बातों  की  सच्चाईयों  में था

हालाँकि  ख़ुद "शफ़ीक़”   बिखरता  चला गया 
मसरूफ़ फिर भी अंजुमन  आराईयों  में था

शफ़ीक़ रायपुरी
जगदलपुर ज़िला बस्तर 
                                (छत्तीसगढ़)

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।