ग़ज़ल - 4 - शफ़ीक़ रायपुरी, बस्तर , छत्तीसगढ़

ज़िन्दगी भर के लिये तुझ से ख़फ़ा हो जाऊंगा  जो न होगा ख़त्म मैं वो फ़ासिला हो जाऊंगा......

Aug 27, 2024 - 10:48
Aug 27, 2024 - 10:46
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ग़ज़ल - 4 - शफ़ीक़ रायपुरी, बस्तर , छत्तीसगढ़
ग़ज़ल - 4 - शफ़ीक़ रायपुरी, बस्तर , छत्तीसगढ़

ग़ज़ल 

ज़िन्दगी भर के लिये तुझ से ख़फ़ा हो जाऊंगा 
जो न होगा ख़त्म मैं वो फ़ासिला हो जाऊंगा

जब कभी क़ैदे-मुसीबत से रिहा हो जाऊंगा 
दोस्तों के  वास्ते  फिर  आशना हो जाऊंगा

सोच ले ज़ालिम! सितम के बाद मायूसी न हो
 मेरा  क्या  है  पैकरे-सब्रो-रज़ा हो जाऊंगा

वो बुरा कहता है मुझ को शौक़ से कहता रहे 
क्या बुरा कहने से उसके मैं बुरा हो जाऊंगा

फैल जाऊंगा फ़ज़ा में  हर तरफ़ फैला जो मैं
 और अगर सिमटा तो तेरा नक़्शे-पा हो जाऊंगा

ढूंढना खुद  को  पड़ेगा   जुस्तजू-ए-यार में 
क्या ख़बर थी इस क़दर मैं ला पता हो जाऊंगा

मैं अभी दस्ते-सिकन्दर में हूँ पत्थर हूँ तो क्या
 क़ैद सूरज  को  करूंगा  आईना  हो जाऊंगा

मै दयारे-शौक में इक खोटा सिक्का हूँ तो क्या
 आप के हाथों में पहुंचा तो खरा हो जाऊंगा

दिन तो जैसे तैसे कट जाएगा लेकिन ऐ 'शफ़ीक़' 
शाम होते  ही  ग़मों  में  मुब्तिला हो जाऊंगा

शफ़ीक़ रायपुरी
जगदलपुर ज़िला बस्तर 
(छत्तीसगढ़)

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।