ग़ज़ल - 5 - शफ़ीक़ रायपुरी, बस्तर , छत्तीसगढ़

हुज़्नो-इफ़्लास के जो मज़हर हैं  गांव  में  ऐसे   लोग  घर  घर हैं.....

Aug 30, 2024 - 12:00
Aug 30, 2024 - 12:05
 0
ग़ज़ल - 5 - शफ़ीक़ रायपुरी, बस्तर , छत्तीसगढ़
ग़ज़ल - 5 - शफ़ीक़ रायपुरी, बस्तर , छत्तीसगढ़

ग़ज़ल

हुज़्नो-इफ़्लास के जो मज़हर हैं
 गांव  में  ऐसे   लोग  घर  घर हैं

काटते  हैं गला  गले  मिल कर
 ज़ालिमों की बग़ल में ख़ंजर हैं

हर तरफ छा रहा है ख़ौफ़ो-हिरास
 हर तरफ़   हौल - नाक   मंज़र हैं

शोरो - हंगाम - ए - जहालत  में
 अपनी ख़ामोशियां ही बेहतर हैं

दुश्मने - जॉं  है  दोस्ती  उन की 
उन की बातें नहीं  हैं  निश्तर हैं

कल  यही  लोग  दोस्त  थे मेरे 
जिन के हाथों में आज पत्थर हैं

किस को छोटा कहूं बड़ा किस को
 मेरी  नज़रों   में   सब   बराबर हैं

कब मिले थे किसी से हम लेकिन
 ज़हनो - दिल आज तक मुअत्तर हैं

खुद को कहते हो बे गुनाह "शफ़ीक़”  
कितने  इल्ज़ाम  आप  के  सर  हैं

शफ़ीक़ रायपुरी
जगदलपुर ज़िला बस्तर 
(छत्तीसगढ़)

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।