Dhanbad SandMafia: सफेद बालू के काले खेल में कौन है शामिल? 45 हजार में बिक रहा एक हाइवा!
धनबाद में सफेद बालू का अवैध धंधा जोरों पर, 45 हजार में बिक रहा एक हाइवा! प्रशासन मौन, बालू माफिया मालामाल। जानें पूरी खबर।
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धनबाद: झारखंड के कोयला नगरी धनबाद में अब सफेद बालू का काला कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है। जिले की नदियों और घाटों से हर रोज़ अवैध रूप से हजारों टन बालू की तस्करी हो रही है। स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि अब एक हाइवा बालू की कीमत 40 से 45 हजार रुपये तक पहुंच चुकी है। खास बात यह है कि यह अवैध कारोबार बंगाल के चालान के जरिए खुलेआम चल रहा है, जिससे सरकार को हर महीने लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है।
कैसे हो रहा बालू का गोरखधंधा?
धनबाद के टुंडी, पूर्वी टुंडी, निरसा, पोलकेरा, घुरनीबेड़ा, सररा, मैथन और पंचेत नदी घाटों से हर दिन सैकड़ों हाइवा और हजारों ट्रैक्टर अवैध रूप से बालू ढो रहे हैं। इन ट्रकों और ट्रैक्टरों में से कई बंगाल के चालान पर चलते हैं, लेकिन स्थानीय पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत के चलते यह खेल बिना किसी रोक-टोक के जारी है। खनन विभाग और परिवहन विभाग भी इस खेल में बराबर की हिस्सेदारी निभा रहे हैं।
बालू के बढ़ते दामों ने बढ़ाई मुश्किलें
धनबाद में कुछ साल पहले 24 रुपये सीएफटी मिलने वाला बालू अब 45 रुपये सीएफटी तक बिक रहा है। इससे रियल एस्टेट सेक्टर पर बुरा असर पड़ा है। कई बड़े प्रोजेक्ट धीमी गति से चल रहे हैं, जबकि कुछ निर्माण कार्य पूरी तरह से ठप हो चुके हैं। बिल्डरों का कहना है कि बालू की कीमतें बढ़ने से प्रोजेक्ट कॉस्ट भी बढ़ गई है, लेकिन फ्लैट की कीमतें अब भी पुरानी दरों पर ही हैं।
सुबह-शाम धड़ल्ले से होता है उठाव
सूत्रों के मुताबिक, अवैध बालू उठाव का यह खेल सुबह 3 बजे से 7 बजे तक और फिर शाम 4 बजे से रात 11 बजे तक चलता है। झरिया क्षेत्र के भौंरा जहाजटांड, कालीमेला, सुदामडीह, बिरसा पुल, अमलाबाद, गोवसाला और टासरा दामोदर नदी घाट इस कारोबार के हॉटस्पॉट बन चुके हैं। यह सब कुछ प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती।
इतिहास में भी रहा है अवैध खनन का बोलबाला
धनबाद हमेशा से अवैध खनन के लिए बदनाम रहा है। कोयले की तस्करी यहां दशकों से चलती आ रही है, लेकिन अब बालू का गोरखधंधा भी उसी तर्ज पर बढ़ता जा रहा है। पहले कोयले की ब्लैक मार्केटिंग से माफिया मोटी कमाई करते थे, लेकिन अब बालू का अवैध व्यापार भी संगठित अपराधियों के लिए एक नया सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन गया है।
सरकार और प्रशासन क्यों हैं मौन?
बालू के इस काले कारोबार में खनन विभाग, परिवहन कार्यालय और स्थानीय प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। जानकारों का कहना है कि हर स्तर पर ‘सिस्टम’ का हिस्सा तय है और इसे हर महीने माफियाओं द्वारा पहुंचा दिया जाता है। यही कारण है कि छिटपुट कार्रवाइयों के अलावा किसी बड़े माफिया पर हाथ नहीं डाला जाता।
निगरानी की जरूरत, वरना बढ़ेगी मुश्किलें
अगर इस अवैध धंधे पर जल्द लगाम नहीं लगाई गई, तो यह आने वाले समय में और भी बड़े स्तर पर फैल सकता है। सरकार को चाहिए कि वह इस पर सख्त कार्रवाई करे और जो भी इसमें शामिल हैं, उनके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए।
क्या होगा आगे?
अब देखने वाली बात यह होगी कि प्रशासन इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से लेता है। क्या सरकार इस बालू माफिया पर नकेल कस पाएगी, या फिर धनबाद में सफेद बालू का काला खेल इसी तरह जारी रहेगा? यह एक बड़ा सवाल है, जिसका जवाब समय ही देगा।
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