Bengaluru Horror: जब ‘इलाज’ के नाम पर बर्बरता हुई और पुनर्वास केंद्र बना नरक का दरवाज़ा!
बेंगलुरु के पास एक प्राइवेट पुनर्वास केंद्र में मरीज के साथ अमानवीय हिंसा का वीडियो वायरल हुआ है। सीसीटीवी में दिखाई गई पिटाई ने लोगों को झकझोर दिया है। पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है।

बेंगलुरु के पास एक प्राइवेट rehabilitation centre से आई एक वायरल वीडियो ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। जहां उम्मीद की जाती है कि मानसिक और शारीरिक रूप से पीड़ितों को नई जिंदगी मिलेगी, वहीं उस केंद्र के अंदर जो हुआ, वो किसी कालकोठरी से कम नहीं था।
करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित इस पुनर्वास केंद्र में एक मरीज के साथ हुई दरिंदगी अब देश भर में चर्चा का विषय बनी हुई है। सीसीटीवी फुटेज में जो कुछ सामने आया, वो इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला था।
वीडियो में क्या है?
सीधे बात करें तो इस वीडियो में एक मरीज को पहले कमरे के कोने में दबोच लिया जाता है, फिर एक शख्स उसे लकड़ी की छड़ी से बेरहमी से पीटना शुरू करता है। बाकी लोग सिर्फ तमाशा देखते हैं। थोड़ी ही देर में दूसरा व्यक्ति भी डंडा लेकर आता है और मारपीट में शामिल हो जाता है।
यह कोई फिल्मी सीन नहीं, बल्कि हकीकत है — एक इंसान की असहाय चीखें, एक इलाज की जगह पर हो रहा ज़ुल्म।
देर से सामने आया सच
यह घटना कुछ दिन पहले की बताई जा रही है, लेकिन इसका वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। जैसे ही वीडियो वायरल हुआ, पुलिस ने हरकत में आकर केस दर्ज कर लिया और सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। उनके खिलाफ आर्म्स एक्ट सहित गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है।
और भी चौंकाने वाली तस्वीरें
इतना ही नहीं, पुलिस के हाथ लगे कुछ और फोटो भी हैरान करने वाले हैं। इन तस्वीरों में वही लोग, जो मरीज की पिटाई में शामिल थे, एक जन्मदिन समारोह मना रहे हैं — लेकिन चाकू से नहीं, एक बड़े खंजर से केक काटते हुए!
यह सवाल खड़ा करता है कि क्या यह केवल एक पुनर्वास केंद्र था, या कुछ और?
क्या कहते हैं आंकड़े और इतिहास?
भारत में प्राइवेट पुनर्वास केंद्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन इनके रेगुलेशन और मॉनिटरिंग पर अब भी गंभीर सवाल हैं। 2016 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने देश भर के कई नशा मुक्ति केंद्रों की ऑडिट रिपोर्ट में बताया था कि वहां अमानवीय व्यवहार, ओवरडोज़, जबरन बंधक बनाना और हिंसा जैसी घटनाएं आम हैं।
झारखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में पहले भी इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं, जहां पुनर्वास केंद्र मरीजों के लिए इलाज के बजाय सज़ा का स्थान बन गए।
प्रशासन की भूमिका और लापरवाही?
इतना बड़ा केंद्र बिना निगरानी के कैसे चल रहा था? क्या स्थानीय प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और पुलिस को इस बात की भनक नहीं थी? अगर वीडियो सामने नहीं आता, तो क्या यह अपराध यूं ही चलता रहता?
इन सवालों का जवाब अभी तक अधूरा है।
कानून और सामाजिक ज़िम्मेदारी
इस घटना ने एक बार फिर से यह स्पष्ट कर दिया है कि मानसिक और नशा से पीड़ित मरीजों को सिर्फ इलाज की नहीं, इंसानियत की भी ज़रूरत है। उन्हें अपराधियों की तरह नहीं, बल्कि एक बीमार व्यक्ति की तरह देखा जाना चाहिए।
साथ ही, पुनर्वास केंद्रों की निगरानी के लिए एक पारदर्शी सिस्टम की ज़रूरत है, जहां शिकायतों का तुरंत संज्ञान लिया जाए और समय-समय पर ऑडिट हो।
Bengaluru का यह मामला सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि चेतावनी है — इलाज के नाम पर चल रही क्रूरता अब बर्दाश्त नहीं की जा सकती। यदि समय रहते प्रशासन, समाज और मीडिया ऐसे मामलों पर कड़ा रुख नहीं अपनाते, तो यह “इलाजगृह” धीरे-धीरे यातना गृह बनते जाएंगे।
अब सवाल सिर्फ यही है — क्या यह आखिरी मामला होगा, या फिर अगली बार कोई और कैमरे में कैद होगा?
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