आजादी का रखना मान - विजय नारायण सिंह "बेरुका"
गीतिका आधार छंद -- आल्हा / वीर छंद मात्रिक छंद (मात्राभार 16,15 पर यति) 16 मात्रा के बाद यति अनिवार्य, अंत में लघु अनिवार्य , चरणों के आरम्भ में द्विकल + त्रिकल "+ त्रिकल निषेध इसकी मापनी इस प्रकार भी रख सकते है 22 22 22 22 , 22 22 22 21 लेकिन इसमें 1212 , 2112 , 2121 को 222 पढ़ने की छूट होती है |
आजादी का रखना मान
आजादी के मतवालों ने, हँस कर दे दी अपनी जान ।
पराधीनता से लड़ने में, अपने प्राण किये बलिदान ॥१॥
तन पर कोड़े बरस रहे थे, पर मुँह से निकले नहिं हाय,
डण्डे बरसे, चली गोलियाँ, डटे रहे वे सीना तान ॥२॥
गाँव, गली, हर कूचे में था, अंग्रेजों का नरसंहार।
आजादी के दीवाने थे, दृढ़ प्रतिज्ञ, साहसी, महान ॥३॥
जुल्म सहे सब अंग्रेजों के, सजा जेल की भी ली काट,
लड़कर छीनी आजादी यह, उन पर हमको है अभिमान ॥४॥
देश रहे खुशहाल हमारा, कुर्बानी मत जाना भूल,
जान लुटा कर दी आजादी, हरदम इसका रखना मान ॥५॥
नयी नयी तकनीकें आयें, और प्रगति हो चारों ओर,
रोजगार हो सभी हाथ को, खिले चेहरों पर मुस्कान ॥६॥
आपस में हो भाईचारा, प्रेम-भाव, विश्वास, लगाव ।
साथ 'बेरुका' रहें, करें सब, एक दूसरे का सम्मान॥७॥
- विजय नारायण सिंह "बेरुका"
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