Jajpur Celebration: ‘सरजोम बा’ महोत्सव में गूंजे जनजातीय संगीत के अनोखे सुर, झूम उठा सुकिंदा!
ओडिशा के जाजपुर जिले के सुकिंदा में ‘सरजोम बा’ महोत्सव ने पारंपरिक जनजातीय संगीत और लोकसंस्कृति की गूंज से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस भव्य आयोजन में 300 से अधिक जनजातीय कलाकारों ने अपने संगीत और नृत्य प्रस्तुतियों से समां बांध दिया।

क्या आपने कभी जनजातीय संगीत की उन धुनों पर झूमने का अनुभव किया है, जो सदियों पुरानी परंपराओं और संस्कृति की गूंज बनकर आज भी जीवंत हैं? अगर नहीं, तो ओडिशा के जाजपुर जिले के सुकिंदा में आयोजित ‘सरजोम बा’ महोत्सव आपको इस अनूठे लोकसंगीत से रूबरू कराता है। यह सिर्फ एक संगीत उत्सव नहीं, बल्कि जनजातीय समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक वाद्ययंत्रों को जीवंत करने का एक अभिनव प्रयास है।
शनिवार की शाम, जब सप्ताह की थकान से मुक्त होने का सही समय था, तब सुकिंदा घाटी में संगीत और नृत्य का ऐसा समां बंधा कि हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया। पारंपरिक वाद्ययंत्रों की ताल और लोकगीतों की मधुर धुनों ने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। यह आयोजन टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा टाटा स्टील के सुकिंदा क्रोमाइट माइंस परिसर में किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य जनजातीय संगीत की समृद्ध धरोहर को सहेजना और आने वाली पीढ़ियों को इससे परिचित कराना था।
300 से अधिक जनजातीय कलाकारों की प्रस्तुति
महोत्सव में 300 से अधिक जनजातीय संगीतकार और नृत्यकारों ने अपने अनूठे पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ प्रस्तुति दी। तुमड़ा, तमाक, सकवा, झुमका, घुमरा और करतल की मंत्रमुग्ध कर देने वाली ध्वनियों ने श्रोताओं को एक अलग ही दुनिया में पहुंचा दिया। संगीत प्रेमियों के लिए यह एक दुर्लभ अनुभव था, जहां लोकसंगीत की प्राचीन परंपराएं जीवंत हो उठीं।
टाटा स्टील के फेरो एलॉयज एंड मिनरल्स डिवीजन (एफएएमडी) के एग्जीक्यूटिव-इन-चार्ज, पंकज सतीजा ने इस पहल पर कहा, "हम जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं। लोक संगीत और नृत्य न केवल मनोरंजन के साधन हैं, बल्कि ये हमारे समाज की कहानियों, संघर्षों और आकांक्षाओं को भी दर्शाते हैं। ‘सरजोम बा’ महोत्सव हमारी समृद्ध परंपराओं को संजोने और समावेशिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।"
जनजातीय परंपराओं का जीवंत संगम
इस महोत्सव में संताल, सबर, भूमिज और हो जनजातियों के कलाकारों ने भाग लिया और अपने शानदार संगीत एवं नृत्य प्रस्तुतियों से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। ‘सरजोम बा’ नाम दो संथाली शब्दों से मिलकर बना है – ‘सरजोम’ जिसका अर्थ साल का पेड़ है और ‘बाहा’ जिसका अर्थ फूल होता है। यह महोत्सव संताल जनजाति के बाहा पर्व से प्रेरित है, जिसे वनों से लघु वनोपज संग्रह की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व में समुदाय पारंपरिक पूजा, गीत और उल्लास से भरे उत्सव का आयोजन करता है।
संस्कृति संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम
इस साल के महोत्सव में पांच जनजातीय संगीत केंद्रों के कलाकारों ने अपनी पारंपरिक प्रस्तुतियां दीं। इन केंद्रों की स्थापना पिछले वर्ष ‘सरजोम बा’ कार्यक्रम के बाद की गई थी, जिससे जनजातीय लोकसंगीत को संरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया। इन कलाकारों ने अपने पारंपरिक नृत्य और संगीत के माध्यम से लोकसंस्कृति को संरक्षित करने का संदेश दिया।
इस अवसर पर टाटा स्टील के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित रहे, जिनमें प्रमोद कुमार (हेड, एडमिनिस्ट्रेशन, एफएएमडी), निहार रंजन मित्र (सीनियर एरिया मैनेजर, माइनिंग ऑपरेशन, एफएएमडी) और देबंजन मुखर्जी (हेड, कलिंगानगर इम्पैक्ट क्लस्टर, टाटा स्टील फाउंडेशन) शामिल थे।
जनजातीय धुनों पर झूम उठा सुकिंदा
‘सरजोम बा’ महोत्सव केवल एक संगीत उत्सव नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक अभियान है, जो जनजातीय समुदायों की पहचान को बनाए रखने और उनकी कला को नए स्तर पर ले जाने का कार्य कर रहा है। यह आयोजन साबित करता है कि पारंपरिक लोकसंगीत और नृत्य सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि ये समाज की आत्मा और पहचान भी हैं। ऐसे महोत्सव आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने और संस्कृति को संजोने के लिए प्रेरित करते हैं।
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