Rishikesh: गंगा-टेम्स 'अंतर्राष्ट्रीय गाथा महोत्सव' 2024 में हर दिल को छूने वाला सांस्कृतिक संगम
ऋषिकेश में आयोजित 'गंगा-टेम्स अंतर्राष्ट्रीय गाथा महोत्सव' में कला, संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण का अद्भुत संगम। जानें इस महोत्सव की खासियत।
ऋषिकेश:17 नवंबर 2024 को उत्तराखंड के ऋषिकेश में आयोजित गंगा-टेम्स अंतर्राष्ट्रीय गाथा महोत्सव ने भारतीय और ब्रिटिश कला, संस्कृति और साहित्य के संगम को प्रदर्शित करते हुए एक ऐतिहासिक मोड़ लिया। यह महोत्सव पार्श्व अंतर्राष्ट्रीय विवि सेवार्थ न्यास द्वारा आयोजित किया गया था और इस आयोजन का उद्देश्य न केवल दोनों देशों की सांस्कृतिक धरोहर को एक साथ प्रस्तुत करना था, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, जल और वायु संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाना भी था।
महोत्सव का उद्देश्य:
यह महोत्सव गंगा और टेम्स नदियों के बीच सांस्कृतिक और साहित्यिक संबंधों को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया। गंगा नदी (भारत) और टेम्स नदी (ब्रिटेन) की सुरम्य धाराओं और उनके आस-पास के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों को एक मंच पर लाकर इनकी परंपराओं और धरोहरों को समृद्ध करना इसका मुख्य लक्ष्य था। साथ ही, इस महोत्सव के दौरान पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर भी चर्चा की गई, ताकि नदियों के संरक्षण और संवर्धन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहित किया जा सके।
डॉ. सुरेश सिंह शौर्य 'प्रियदर्शी' की महत्वपूर्ण भूमिका:
इस महोत्सव के संस्थापक, 'भारत सेवा रत्न' से सम्मानित डॉ. सुरेश सिंह शौर्य 'प्रियदर्शी' ने कहा कि यह आयोजन दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संवाद को मजबूत करेगा। इस महोत्सव में विशेष अतिथि के रूप में डॉ. राम रतन श्रीवास 'राधे राधे' उपस्थित रहे, जिन्होंने आभासी माध्यम से कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इसके अलावा, अन्य कई प्रमुख हस्तियां जैसे डॉ. सुनील दत्त थपलियाल, शांति प्रकाश जिज्ञासु, और अन्य साहित्यकारों ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया और अपनी उपस्थिति से इसे और भी महत्वपूर्ण बना दिया।
साहित्यिक सम्मान और पुरस्कार वितरण:
महोत्सव में देश-विदेश से आए साहित्यकारों को उनके साहित्य में योगदान के लिए भारत-ब्रिटेन साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. सुरेश सिंह शौर्य 'प्रियदर्शी' और डॉ. राम रतन श्रीवास 'राधे राधे' द्वारा यह सम्मान समारोह आयोजित किया गया, जिसमें साहित्यिक योगदान देने वाले विभिन्न कवियों और लेखकों को उनके कार्यों के लिए सम्मानित किया गया।
विदेशी साहित्यकारों का योगदान:
इस महोत्सव में कई विदेशी साहित्यकारों की उपस्थिति भी खास रही, जिनमें डॉ. सुरीति रघुनंदन (मौरिशस), डॉ. रवि घायल (कनाडा), और प्रांजल (लंदन) शामिल थे। इन साहित्यकारों ने अपने-अपने देशों की सांस्कृतिक धरोहर और साहित्यिक योगदान को प्रस्तुत किया, जिससे इस महोत्सव की अंतर्राष्ट्रीयता और भी मजबूत हुई।
संगीत, नृत्य और पुस्तक विमोचन:
इस महोत्सव का एक अन्य आकर्षण शास्त्रीय संगीत और नृत्य प्रस्तुतियाँ थीं, जिनमें भारतीय संस्कृति की गहराई को प्रदर्शित किया गया। इसके अलावा, सुसभ्यता के राम नामक पुस्तक का विमोचन भी इस अवसर पर किया गया, जो देश के विभिन्न कवियों की कविताओं से सुसज्जित है।
शिक्षा और जागरूकता का महत्वपूर्ण प्रयास:
डॉ. सुरेश सिंह शौर्य और ट्रस्ट के 7 सालों के प्रयासों के कारण, गिरिडीह (झारखंड) में एक विश्वविधालय की स्थापना संभव हो पाई। इसके अलावा, गिरिडीह के दो गुरुकुलों में ग्रामीण क्षेत्रों में संस्कार और कंप्यूटर शिक्षा दी जा रही है, जिससे शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने में मदद मिल रही है।
ऋषिकेश में आयोजित गंगा-टेम्स अंतर्राष्ट्रीय गाथा महोत्सव ने भारतीय और ब्रिटिश संस्कृति के बीच एक नया पुल बनाने का कार्य किया है। इस महोत्सव ने न केवल सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा दिया, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और जल-वायु संवर्धन की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसके साथ ही, यह आयोजन भविष्य में और अधिक साहित्यिक महोत्सवों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगा।
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