Jamshedpur Tribute: भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर सैनिकों ने किया नमन, गूंजे झारखंडी नारे
जमशेदपुर में पूर्व सैनिक सेवा परिषद ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की। जनजातीय गौरव दिवस पर वीर बिरसा के बलिदान और साहस को याद किया गया।
15 नवम्बर, 2024: जमशेदपुर में अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद ने हर साल की तरह इस बार भी भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर विशेष आयोजन किया। साकची स्थित भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर संगठन के सदस्यों और सेवानिवृत्त सैनिकों ने वीर धरतीपुत्र को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर ‘जोहार झारखंड’ और ‘भगवान बिरसा मुंडा अमर रहें’ जैसे नारों से वातावरण गूंज उठा।
बिरसा मुंडा का अद्वितीय योगदान
भगवान बिरसा मुंडा, जिन्हें आदिवासी समाज में धरती आबा (धरती के पिता) के नाम से जाना जाता है, ने अपनी मात्र 27 वर्षों की छोटी-सी जिंदगी में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह छेड़ा। उन्होंने आदिवासी समाज की पहचान, संस्कृति और परंपराओं को बचाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया। झारखंड और आसपास के क्षेत्रों में उन्होंने मुंडा विद्रोह का नेतृत्व किया, जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक प्रेरणादायक जनांदोलन था।
संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष राजेश पांडे ने सभा को संबोधित करते हुए बिरसा मुंडा के साहस और बलिदान की कहानियां साझा कीं। उन्होंने कहा, "धरती आबा ने न केवल जनजातीय समाज के अधिकारों के लिए संघर्ष किया, बल्कि उन्होंने पूरे राष्ट्र की संस्कृति और अखंडता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया।"
सैनिकों और नागरिकों की भागीदारी
कार्यक्रम में तीनों सेनाओं से सेवानिवृत्त सैनिकों के साथ-साथ स्थानीय नागरिक भी भारी संख्या में उपस्थित थे। संगठन के महामंत्री जितेंद्र सिंह और अध्यक्ष विनय यादव ने भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित की। सभा में उपस्थित अन्य प्रमुख सदस्यों में हवलदार अवधेश कुमार, नायब सूबेदार कृष्ण मोहन, सत्येंद्र सिंह और सत्य प्रकाश शामिल थे।
झारखंड स्थापना दिवस और जनजातीय गौरव दिवस
भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर झारखंड स्थापना दिवस और जनजातीय गौरव दिवस के महत्व को भी याद किया गया। वक्ताओं ने झारखंड के विकास और संस्कृति में बिरसा मुंडा के योगदान को प्रमुखता से उजागर किया। इस अवसर पर कहा गया कि उनका जीवन हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
आयोजन से झारखंडी पहचान को बल
सैनिकों और नागरिकों ने मिलकर इस आयोजन को झारखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान का प्रतीक बना दिया। यह आयोजन न केवल भगवान बिरसा मुंडा की वीरता को याद करने का मौका था, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को उनकी विरासत से जोड़ने का माध्यम भी।
भगवान बिरसा मुंडा का जीवन एक प्रेरणा है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी साहस और बलिदान से एक समाज की रक्षा की जा सकती है। जमशेदपुर में आयोजित इस कार्यक्रम ने जनजातीय समाज के गौरव को फिर से जीवंत कर दिया।
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