झारखंड: इंटरनेट बंद करने के खिलाफ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर, सरकार से जवाब तलब
झारखंड में जेएसएससी सीजीएल परीक्षा के दौरान इंटरनेट बंद करने के खिलाफ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई। कोर्ट ने सरकार से पूछा, क्या हर परीक्षा में इंटरनेट बंद किया जाएगा? सरकार को चार सप्ताह में जवाब देने का निर्देश।
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झारखंड में जेएसएससी सीजीएल परीक्षा के दौरान राज्य में इंटरनेट सेवा बंद करने के फैसले के खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है। इस याचिका पर शनिवार को हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आनंद सेन और न्यायमूर्ति अनुधा रावत चौधरी की खंडपीठ ने सुनवाई की। सुनवाई के दौरान अदालत ने राज्य सरकार के इंटरनेट बंद करने के निर्णय पर गंभीर सवाल उठाए और राज्य से इसकी स्पष्ट नीति के बारे में जानकारी मांगी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इंटरनेट सेवा बंद करना नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है। याचिका में कहा गया कि परीक्षा के दौरान इंटरनेट बंद करना आम लोगों के लिए असुविधाजनक साबित हो रहा है और यह डिजिटल युग में संचार और व्यापार को बाधित कर रहा है। यह कदम न केवल छात्रों और परीक्षार्थियों के लिए बल्कि व्यापार, शिक्षा और अन्य दैनिक कार्यों में भी समस्या पैदा कर रहा है।
अदालत ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और राज्य सरकार से पूछा, "क्या हर परीक्षा में इंटरनेट बंद कर दिया जाएगा? इसके लिए क्या कोई स्पष्ट नीति है?" अदालत ने यह भी सवाल किया कि सरकार किस आधार पर और किन परिस्थितियों में इंटरनेट सेवा बंद करने का फैसला लेती है। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह चार सप्ताह के भीतर एफिडेविट दाखिल कर इस मामले में अपना पक्ष प्रस्तुत करे।
राज्य सरकार ने परीक्षा में नकल रोकने के लिए इंटरनेट बंद करने के निर्णय का बचाव किया, लेकिन अदालत ने कहा कि यह नागरिकों के अधिकारों और उनकी दैनिक आवश्यकताओं के खिलाफ जा सकता है। इस मुद्दे पर अदालत ने राज्य सरकार से स्पष्ट नीति की मांग की, ताकि भविष्य में इस तरह के फैसलों पर पारदर्शिता बनी रहे।
इस मामले में इंटरनेट बंद करने के खिलाफ दायर याचिका में कहा गया है कि परीक्षा के दौरान राज्य के बड़े हिस्सों में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई, जिससे लाखों लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इंटरनेट आज के समय में एक आवश्यक सेवा है, और इसे बंद करने से शिक्षा, व्यापार, चिकित्सा सेवाएं, और अन्य कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में समस्या उत्पन्न हो सकती है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी माना कि इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगाना, विशेषकर परीक्षा के दौरान, एक असामान्य कदम है। अदालत ने यह भी कहा कि यह देखा जाना चाहिए कि क्या नकल रोकने के लिए कोई और बेहतर तरीका अपनाया जा सकता है, जिससे इंटरनेट सेवाओं को बंद न करना पड़े।
इस मामले में राज्य सरकार को अब हाईकोर्ट के समक्ष चार सप्ताह में अपनी विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करनी होगी। यह रिपोर्ट यह स्पष्ट करेगी कि सरकार किस नीति के तहत इंटरनेट सेवाओं को बंद करने का निर्णय लेती है और क्या इस तरह के निर्णय के लिए कोई वैकल्पिक उपाय हो सकते हैं।
यह मामला अब न केवल झारखंड में, बल्कि पूरे देश में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, जहां विभिन्न परीक्षाओं के दौरान इंटरनेट सेवा बंद करने के निर्णय पर सवाल उठ रहे हैं। यह देखना होगा कि अदालत इस मुद्दे पर क्या निर्णय लेती है और राज्य सरकार कैसे इस पर जवाब देती है।
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