इंकलाब दोहराऊंगी - वर्षा ठाकुर
प्रश्न उठे ग़र भारत पर मैं प्रश्नोत्तर को गाऊंगी, भारत की अक्षुण्ण विरासत बेशक मैं दोहराऊंगी, ...
इंकलाब दोहराऊंगी
प्रश्न उठे ग़र भारत पर मैं प्रश्नोत्तर को गाऊंगी,
भारत की अक्षुण्ण विरासत बेशक मैं दोहराऊंगी,
लिखूँगी अंतिम क्षण तक अपने भारत भाग्य विधाता को,
कतरा कतरा कुर्बान हुआ उस कुर्बानी की गाथा को,
मिली ना ये भारत की माटी हमदर्दी लाचारी से,
ना सत्याग्रह की वाणी से और ना गांधी की लाठी से,
भारत के असली रक्षक को मारते दम तक गाऊंगी,
कविता को तलवार बना मैं इंकलाब दोहराऊंगी।
वर्षा ठाकुर
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