ग़ज़ल - 17 - रियाज खान गौहर, भिलाई

दिल के अरमान छुपाऊं तो छुपाऊं कैसे  आतिशे शौक से दामन को बचाऊं कैसे ...........

Sep 1, 2024 - 16:21
Sep 1, 2024 - 17:51
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ग़ज़ल - 17 - रियाज खान गौहर, भिलाई
ग़ज़ल - 17 - रियाज खान गौहर, भिलाई

गजल 

दिल के अरमान छुपाऊं तो छुपाऊं कैसे 
आतिशे शौक से दामन को बचाऊं कैसे 

बागे दिल हो गया विरान बसाऊं कैसे 
अपनें अरमानों के गुंचे को खिलाऊं कैसे 

आज दो वक्त की रोटी के पड़े हैं लाले 
नौजवां बेटी का मैं ब्याह रचाऊं कैसे 

किस तरह दर्श मोहब्बत का उन्हें मैं अब दूं 
आग नफरत की जो भड़की है बुझाऊं कैसे 

कोई तदवीर मिरे जहन में आती ही नहीं 
वो तो रूठें है कसम खाके मनाऊं कैसे 

दिल की धड़कन में न तेजी न रवांनी खूं में 
सूरते हाल ये है उनको बताऊं कैसे 

दास्तानें दिले मजरूहे मोहब्बत गौहर 
मुझमें ताकत नहीं दुनिया को सुनाऊं कैसे 

गजलकार 
रियाज खान गौहर भिलाई

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।