ग़ज़ल - 18 - रियाज खान गौहर, भिलाई
यार नें जब रुलाया गजल हो गई और जब भी हंसाया गजल हो गई .....
गजल
यार नें जब रुलाया गजल हो गई
और जब भी हंसाया गजल हो गई
मुद्दतों बाद मैनें जो देखा उन्हें
इक नशा सा जो छाया गजल हो गई
बेखबर जा रहा था किसी नें मुझे
अपना कह के बुलाया गजल हो गई
जानें कब से वो चेहरा छुपाते रहे
रुख से पर्दा हटाया गजल हो गई
एक पल में हुआ क्या से क्या माजरा
उसनें जलवा दिखाया गजल हो गई
आपसे दूर जाना गंवारा न था
दिल नें ऐसा सताया गजल हो गई
आपका आना जाना गजब ढ़ा गया
दिल मेरा यूं लुभाया गजल हो गई
गम न गौहर करो तेरे हमदर्द हैं
दोस्त नें ये सुनाया गजल हो गई
गजलकार
रियाज खान गौहर भिलाई
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