काव्य गोष्ठी और सम्मान : काव्य संध्या में  रचनाकारों का काव्य पाठ एवं सम्मान का कार्यक्रम वृंदावन हॉल सिविल लाइन्स रायपुर में आयोजित

काव्य संध्या में  रचनाकारों का काव्य पाठ एवं सम्मान का कार्यक्रम वृंदावन हॉल सिविल लाइन्स रायपुर में आयोजित

Apr 21, 2025 - 20:51
Apr 22, 2025 - 01:57
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काव्य गोष्ठी और सम्मान : काव्य संध्या में  रचनाकारों का काव्य पाठ एवं सम्मान का कार्यक्रम वृंदावन हॉल सिविल लाइन्स रायपुर में आयोजित
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साहित्य सृजन संस्थान द्वारा 21 अप्रैल, 2025 को आयोजित काव्य संध्या में  रचनाकारों का काव्य पाठ एवं सम्मान का कार्यक्रम वृंदावन हॉल सिविल लाइन्स रायपुर में आयोजित किया गया।


साहित्य सृजन संस्थान के इस 32 वीं निरंतर जारी मासिक काव्य कार्यक्रम में कवियों में अपनी काव्य पाठ किया एवं वाहवाही लूटी।

जो गिर कर भी संभलते जा रहे हैं
मुसीबत को कुचलते जा रहे हैं

सियासत पर सियासत हो रही है
नए पहलू निकलते जा रहे है
सुख़नवर हुसैन

चले थे सूरज की रौशनी में जो रात आई तो हम ने जाना 
ज़लील कर देगा चांदनी का ज़रा सा अहसान भी उठाना 

बहोत ग़नीमत है हम से मिलने कभी कभी के ये आने वाले 
नहीं तो उजड़ी हवेलियों में पसंद करता है कौन आना
          जावेद नदीम नागपुरी


ऐसी दुआ करुं न कोई बद्दुआ करुं 
करके बुरा किसी का मैं ख़ुद का भला करूं 

सह-सह के दर्द इश्क़ का मज़बूत हो गया 
आख़िर मैं ऐसे मर्ज़ की अब क्यूँ दवा करुं 

(आर डी अहिरवार)

मेरी होती है जो रुस्वाई तो हो लेने दें l 
अपनी ज़ुल्फ़ों की घनी छाँव में सो लेने दें l
बाद में जितना सताना हो सताना ज़ालिम,
प्रीत का पहले मगर बीज तो बो लेने दें l

उमेश कुमार सोनी 'नयन'

पल भर भी तुम जुदा न होते,
मेरी मन की यादों से,
कानों में गुंजित है स्वर,
तुम्हारे मधुर संवादों से,
       वन्दना ठाकुर

"आसमान में पहुंचा मानव,
किंतु गिर रहे संस्कार हैं कितने,
कुछ तो भूल हुई है मनुज से,
खोई मानवता को जगाना सीखें" 
                 डॉ मृणालिका ओझा

कहाँ गए वे गाँव हमारे ,
कहाँ गए वे लोग |
जहाँ सभी रहते थे मिलकर,
तन-मन थे नीरोग||
डॉ. सरोज दुबे 'विधा'

क्या जाने मेरे दौर के कैसे हैं आदमी।
गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं आदमी।
मुंह पर तो बांधते हैं सिपासो सना के पुल।
और पीठ पीछे ज़ह्र उगलते हैं आदमी।

आलिम नक़वी

चाहतों के सिलसिले ना बंदियों को मानते अब,
दूर तक चलकर थकेंगे भावना के पाँव जब- जब।
तब अंधेरों में फँसी उस याचना को भी समझ लूँ ,
फिर उड़ानों के कतरकर पंख,मन को बाँध लूँगी मैं ।

डॉ गीता विश्वकर्मा 'नेह'

जलते हो तुम घर में लाकर बहू को, 
कभी अपनी बेटी जलाकर तो देखो।  
हमेशा मिलेगा सुकूं दिल को गौहर, 
चिरागे मोहब्बत जलाकर तो देखो।  

रियाज खान गौहर, भिलाई,

अगर हमें ये तेरी ये रहबरी नहीं मिलती, 
कभी खुशी की हमें इक घड़ी नहीं मिलती, 
फकत दुआ के भरोसे न आप बैठे रहे, 
बिना दवा के कभी जिंदगी नहीं मिलती। 

डा, नौशाद अहमद सिद्दीकी, 


इस काव्य संध्या में अंजु पाण्डेय,सुमन शर्मा बाजपेई,मंजूषा अग्रवाल,दीपिका ऋषि झा, आयशा अहमद खान,रेणु तिवारी नंदी,डॉ.भारती अग्रवाल,बलजीत कौर सब्र, डॉ.सरोज दुबे विधा,योगिता तलोकर,अनिता शरद झा, नंदिनी लहेजा, डॉ. मृणालिका ओझा,ज्योति परमाले, शशि किरण इंदु वर्मा,विद्या भट्ट,रवि बाला ठाकुर,रुचि मुले दीक्षित,अदिति तिवारी, अनामिका शर्मा शशि,विजया पाण्डेय, विजया ठाकुर,सीमा पाण्डेय सीमा, डॉ.संध्या रानी शुक्ला,सुषमा पटेल, शुभा शुक्ला निशा, रूनाली चक्रवर्ती, प्रमदा ठाकुर, श्रीमती माला सिंह ने भाग लिया।

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।