ग़ज़ल  - 11 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई

 मुझको गिरा के खुद को उठाने की कोशिशें,  नाकाम कैसे हो ना सताने की कोशिशें।  ......

Aug 31, 2024 - 11:00
Aug 31, 2024 - 11:03
 0
ग़ज़ल  - 11 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई
ग़ज़ल  - 11 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई

ग़ज़ल  

 मुझको गिरा के खुद को उठाने की कोशिशें, 
नाकाम कैसे हो ना सताने की कोशिशें।  

मिट्टी में मिल गई है ज़माने की कोशिशें, 
सरसों हथेलियों पे उगानें की कोशिशें।   

हम कर रहे हैं लगातार देश में यारों, 
माटी का अपना क़र्ज़ चुकाने की कोशिशें।  

पहले ही ग़मजदा  हूं परेशान हाल भी, 
रूदाद कीजिए न सुनाने की कोशिशें।  

अपनों पे करना नाज़ ये तो ठीक है मगर, 
गैरों को भी हो अपना बनाने की कोशिशें।   

अफसोस कर रहे हैं कुछ ऐसे वो काम भी, 
अजमत वतन की अपने घटाने की कोशिशें।  

अंदर से जल रहा है ऐ  नौशाद, दिल मेरा, 
करता हूं फिर भी हंसने हंसानें  की कोशिशें।  

गज़लकार  
नौशाद अहमद सिद्दीकी, 

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।