Dhanbad Suicide Drama: पत्नी से झगड़ा और फिर मौत की कोशिश! परदे के पीछे क्या है कहानी?
धनबाद के बेलगाड़िया इलाके में पत्नी से झगड़े के बाद मजदूर रविंदर महतो ने आत्महत्या की कोशिश की। जानिए कैसे एक पारिवारिक विवाद ने इस घटना को जन्म दिया और किस तरह समय रहते बच गई जान।

धनबाद के बेलगाड़िया इलाके में बुधवार को एक घरेलू विवाद ने ऐसी भयावह करवट ली कि 32 वर्षीय रविंदर महतो ने आत्महत्या करने की कोशिश कर डाली। लेकिन किस्मत ने अभी उसे पूरी तरह छोड़ा नहीं था — ऐन वक्त पर उसकी भांजी की नजर पड़ी और समय रहते उसे बचा लिया गया।
यह घटना केवल एक शराबी पति का अपनी पत्नी से झगड़ा नहीं थी — बल्कि यह कहानी है उस मानसिक दबाव और पारिवारिक तनाव की, जो अक्सर मजदूर वर्ग के पुरुषों को ऐसे खतरनाक कदम उठाने पर मजबूर कर देती है।
घटना कैसे घटी?
बुधवार की सुबह रविंदर महतो, जो पेशे से कैटरिंग में मजदूरी करता है, नशे की हालत में घर लौटा। उसकी पत्नी इस पर नाराज हो गई और दोनों के बीच कहासुनी होने लगी। यह बहस धीरे-धीरे बढ़ती गई, और फिर रविंदर गुस्से में आकर सीधे अपने कमरे में चला गया।
परिवार को लगा कि मामला वहीं खत्म हो गया। लेकिन थोड़ी देर बाद उसकी भांजी ने जब कमरे में झांका, तो रविंदर को फंदे से झूलता पाया। उसके चीखने-चिल्लाने पर बाकी सदस्य दौड़े और किसी तरह उसे नीचे उतारकर एसएनएमएमसीएच (SNMMCH) ले जाया गया। अभी उसकी हालत गंभीर बनी हुई है।
क्या सिर्फ शराब जिम्मेदार है?
रविंदर की कहानी सिर्फ एक शराबी पति की नहीं है। दरअसल, मजदूरी कर गुजारा करने वाले लोगों की ज़िंदगी में तनाव और दबाव का पहाड़ होता है। कैटरिंग जैसी अनिश्चित नौकरी में न नियमित आमदनी होती है, न ही कोई सामाजिक सुरक्षा। ऐसे में शराब अक्सर एक "भागने का रास्ता" बन जाती है।
धनबाद जैसे औद्योगिक शहर में यह कहानी नई नहीं है। हर महीने कई ऐसे मामले सामने आते हैं जहां पारिवारिक कलह और आर्थिक तंगी लोगों को खुदकुशी की ओर धकेल देती है। लेकिन रविंदर महतो का किस्सा इसलिए अलग है क्योंकि उसकी जान ऐन वक्त पर बच गई — और इसी के ज़रिये कई सवाल हमारे सामने खड़े हो जाते हैं।
परिवार की चुप्पी और समाज की भूमिका
घटना के बाद परिजन गहरे सदमे में हैं, लेकिन किसी ने पुलिस में शिकायत नहीं की है। समाज में आज भी आत्महत्या की कोशिश को कलंक माना जाता है, और यही वजह है कि ऐसे मामलों को अक्सर दबा दिया जाता है।
परिवार, समाज और प्रशासन — तीनों की एक साझा जिम्मेदारी बनती है कि मानसिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर खुलकर बातचीत हो। अगर वक्त रहते किसी ने रविंदर से बात की होती, तो शायद यह नौबत नहीं आती।
अस्पताल में जंग ज़िंदगी की
फिलहाल रविंदर महतो का इलाज एसएनएमएमसीएच में चल रहा है। डॉक्टरों के अनुसार उसकी हालत नाजुक है, लेकिन अगर सब कुछ ठीक रहा तो वह बच सकता है। अस्पताल में परिवार का रो-रोकर बुरा हाल है, वहीं आस-पड़ोस के लोग भी स्तब्ध हैं कि एक घरेलू झगड़ा इस हद तक बढ़ सकता है।
धनबाद की ये घटना सिर्फ एक आदमी की नहीं, बल्कि उस समाज की है जहां घरेलू विवादों को हल्के में लिया जाता है और मानसिक स्वास्थ्य पर बात करना अब भी वर्जित माना जाता है। रविंदर की कोशिश भले नाकाम रही, लेकिन यह समाज के लिए एक चेतावनी है कि अगर समय रहते हस्तक्षेप न किया गया, तो अगली बार शायद कोई "भांजी" वहां न हो।
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