India Inspiration: कौन थी सावित्रीबाई फुले? जानें सावित्रीबाई फुले ने कैसे बदली महिलाओं की तकदीर?
सावित्रीबाई फुले की 194वीं जयंती पर जानें कैसे बनीं भारत की पहली महिला शिक्षिका, जिन्होंने समाज में नारी शिक्षा की क्रांति ला दी। पढ़ें उनकी संघर्षगाथा।

Savitribai Phule Jayanti: भारत की पहली महिला शिक्षिका और समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले की 194वीं जयंती आज पूरे देश में श्रद्धा के साथ मनाई जा रही है। पुणे की इस क्रांतिकारी महिला ने शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में जो काम किया, वह आज भी हर किसी के लिए प्रेरणास्रोत है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्होंने किन संघर्षों का सामना किया और कैसे उन्होंने नारी शिक्षा की नींव रखी? आइए जानते हैं उनकी प्रेरणादायक कहानी।
महिलाओं की पहली शिक्षिका, जिन्होंने लिखी इतिहास की नई इबारत
19वीं सदी में जब महिलाओं को शिक्षा से दूर रखा जाता था, तब सावित्रीबाई फुले ने समाज की रूढ़िवादिता को चुनौती दी। उनका जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था। महज 9 साल की उम्र में उनकी शादी ज्योतिराव फुले से हो गई, जिन्होंने न केवल उन्हें शिक्षित किया, बल्कि समाज सुधार में उनका साथ भी दिया। उन्होंने 1848 में पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोला, जो भारतीय शिक्षा इतिहास में एक क्रांतिकारी कदम था।
जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ किया बड़ा संघर्ष
सावित्रीबाई फुले सिर्फ महिलाओं की शिक्षा तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि उन्होंने जातिवाद, छुआछूत और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ भी आवाज उठाई। उन्होंने अपने घर के कुएं को समाज के सभी वर्गों के लिए खोल दिया, ताकि हर कोई बिना किसी भेदभाव के पानी पी सके। यह उस दौर में बहुत बड़ा कदम था, जब दलितों और शोषित वर्ग को बुनियादी अधिकार भी नहीं मिलते थे।
कैसे सहनी पड़ीं समाज की प्रताड़नाएं?
जब सावित्रीबाई शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए घर से निकलती थीं, तब उन्हें समाज के रूढ़िवादी लोगों का भारी विरोध झेलना पड़ा। लोग उन पर कीचड़ फेंकते थे, गालियां देते थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वे हमेशा एक अतिरिक्त साड़ी लेकर चलती थीं, ताकि जरूरत पड़ने पर कपड़े बदल सकें। यह दिखाता है कि अपने लक्ष्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता कितनी दृढ़ थी।
अकाल में बनीं हजारों लोगों की मसीहा
1875-77 के भीषण अकाल के दौरान सावित्रीबाई ने सत्यशोधक समाज के जरिए जरूरतमंदों की मदद की। उन्होंने अनाथ बच्चों और गरीबों के लिए भोजन और शिक्षा की व्यवस्था की। 1896 में जब प्लेग महामारी फैली, तब उन्होंने मरीजों की सेवा की, लेकिन इसी दौरान वे खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गईं। 10 मार्च 1897 को इस महान विभूति ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
विधवाओं के उत्थान के लिए उठाया बड़ा कदम
उस दौर में विधवाओं की स्थिति बहुत दयनीय थी। सावित्रीबाई ने उनके पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया और नाइयों से अपील की कि वे विधवाओं का सिर मुंडवाने से इनकार करें। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि विधवाओं के बच्चों को समाज में अपनापन मिले और वे सुरक्षित रहें।
कविता के जरिए समाज को दिखाया आईना
सावित्रीबाई केवल समाज सुधारक ही नहीं, बल्कि एक प्रतिभाशाली कवियत्री भी थीं। उनकी कविताएं समाज की बुराइयों को उजागर करती थीं और शिक्षा व समानता का संदेश देती थीं। उनकी लिखी कविताएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।
सावित्रीबाई फुले की विरासत आज भी कायम
आज सावित्रीबाई फुले की जयंती पर पूरे देश में उन्हें याद किया जाता है। उन्होंने जिस शिक्षा क्रांति की शुरुआत की, वह आज भी महिलाओं और दलित वर्ग के लिए प्रेरणा बनी हुई है। उनके विचारों और संघर्षों के कारण ही आज महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में नए आयाम छू रही हैं।
सावित्रीबाई फुले केवल एक नाम नहीं, बल्कि नारी शिक्षा और सामाजिक सुधार की मिसाल हैं। उनका संघर्ष हमें सिखाता है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बाधा हमें आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। उनकी कहानी आज भी हमें यह याद दिलाती है कि शिक्षा ही समाज में बदलाव लाने का सबसे बड़ा हथियार है।
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