प्रतिभा प्रभाती - प्रतिभा प्रसाद कुमकुम
कभी वेदना के क्षण में । मन विचलित होता तन में । कैसी- कैसी बात अधर पर - आ आकर लौटे प्रण में ।.....
प्रतिभा प्रभाती
कभी वेदना के क्षण में ।
मन विचलित होता तन में ।
कैसी- कैसी बात अधर पर -
आ आकर लौटे प्रण में ।
सृष्टि के नियम से बंधकर ।
जीवन जीना संभल संभलकर ।
सदा धर्म का पालन करना -
प्रेम सुधा रस बाँटो जमकर ।।
आज प्रभाती बस इतनी ही ।
नमन वंदन करते कितना भी ।
प्रेम सुधा रस पान कराना -
संस्कृति कोश भरें जितना भी ।।
प्रतिभा प्रसाद कुमकुम
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