ग़ज़ल - 1 - फज़ले अब्बास सैफी , रायपुर

हमेशा की तरह कड़वा बहोत था  जो मेरा कौल था सच्चा बहोत था .....

Aug 27, 2024 - 11:20
Aug 27, 2024 - 11:20
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ग़ज़ल - 1 - फज़ले अब्बास सैफी , रायपुर
ग़ज़ल - 1 - फज़ले अब्बास सैफी , रायपुर

ग़ज़ल

हमेशा की तरह कड़वा बहोत था 
जो मेरा कौल था सच्चा बहोत था 

सदाकत का मेरी चर्चा बहोत था 
वहां पर जान का खतरा बहोत था 

मुलाकातों में घबराता बहोत था 
नज़र मिलने पे शरमाता बहोत था 

यही उसको हुनर आता बहोत था 
वो गैरों को भी अपनाता बहोत था 

बिगुल फूंका है उसने दुश्मनी का 
वो जिससे मेरा याराना बहोत था 

जफ़ाओं के वही निकले खिलाड़ी 
वफाओं का जिन्हें दावा बहोत था 

बुराई पे नज़र रखता है अपनी 
बुरा हो कर भी वो अच्छा बहोत था 
निपटने के लिए अपने गमों से 
तेरी आंखों का मैखाना बहोत था 

जहां तर्के त-आल्लुक लिखना चाहा 
वहां मेरा क़लम अटका बहोत था 

भले ही उम्र कुछ कच्ची थी लेकिन 
वो अपनी बात का पक्का बहोत था 

मुकर जाए न वो वादे से अपने 
मुझे इस बात का धड़का बहोत था 

मैं दरिया ले के क्या करता ऐ सैफी 
मुझे पानी का एक कतरा बहोत था।

फज़ले अब्बास सैफी 
एडवोकेट 
सदर बाजार ,रायपुर 

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।