Palamu Scandal : गृह में बच्चियों को कपड़े और खाने का लालच देकर यौन-शोषण 72 साल का दरिंदा
झारखंड के पलामू में बालिका गृह से जुड़ा बड़ा खुलासा हुआ है। बच्चियों को कपड़े और खाने का लालच देकर घर ले जाया जाता था। आरोपी की गतिविधियों से बाल संरक्षण तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े हुए हैं।
झारखंड के पलामू जिले में बाल संरक्षण तंत्र की बड़ी चूक सामने आई है। बालिका गृह में रह रहीं बच्चियों को कपड़े और खाने का लालच देकर घर ले जाने का मामला उजागर हुआ है। इस घटना ने न केवल स्थानीय प्रशासन, बल्कि पूरे राज्य के बाल संरक्षण उपायों को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
क्या है मामला?
घटना की शुरुआत तब हुई, जब बालिका गृह से संबंधित 72 वर्षीय रामप्रसाद गुप्ता पर आरोप लगे।
- गुप्ता बच्चियों को अपने घर ले जाकर उन्हें विशेष खाना और कपड़े देने का वादा करता था।
- जांच में पता चला कि वह अपनी बीमार पत्नी की देखरेख के नाम पर बच्चियों को बुलाता था।
- यह मामला तब सामने आया, जब मानवाधिकार कार्यकर्ता संध्या सिन्हा ने बच्चियों से बात कर उन्हें विश्वास में लिया।
इतिहास में बालिका गृह के मामले
बाल संरक्षण से जुड़े मुद्दे देश में नए नहीं हैं।
- बिहार के मुजफ्फरपुर बालिका गृह मामला 2018 में सामने आया था, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया।
- ऐसे मामलों में बालिका गृहों में रह रही बच्चियों की सुरक्षा और प्रशासनिक लापरवाही पर अक्सर सवाल उठते हैं।
- पलामू की घटना उसी दिशा में एक और चेतावनी है।
जांच रिपोर्ट में क्या सामने आया?
एसडीएम सुलोचना मीणा के नेतृत्व में हुई जांच से कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं:
- जिला बाल संरक्षण अधिकारी और संस्थागत देखरेख अधिकारी को इन गतिविधियों की जानकारी थी।
- उन्होंने मामले की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं दी।
- बालिका गृह की बच्चियों को बिना उचित अनुमति के गुप्ता के घर भेजा जाता था।
सीडब्ल्यूसी और एनजीओ की भूमिका संदिग्ध
जांच रिपोर्ट में चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) और एनजीओ विकास इंटरनेशनल की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई।
- CWC का ध्यान बालिका गृह की देखरेख पर होना चाहिए था।
- इसके बजाय, उन्होंने एनजीओ के साथ काम करते हुए गंभीर चूक की।
प्रशासनिक कार्रवाई और आगे की राह
मामले की गंभीरता को देखते हुए उपायुक्त शशि रंजन ने दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।
- जिला प्रशासन ने बाल संरक्षण अधिकारी और संस्थागत देखरेख अधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
- संविदा पर काम कर रहे इन अधिकारियों को बर्खास्त करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
समाज और प्रशासन की जिम्मेदारी
यह घटना केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी की भी याद दिलाती है।
- बालिका गृहों में बच्चियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियम और नियमित निगरानी की जरूरत है।
- आम जनता को भी सतर्क रहना होगा और ऐसे मामलों में आगे आकर आवाज उठानी होगी।
क्या पर्याप्त हैं सुरक्षा उपाय?
पलामू की यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारे बाल संरक्षण तंत्र पर्याप्त हैं?
- क्या हम बालिका गृहों को सुरक्षित बनाने के लिए आवश्यक कदम उठा रहे हैं?
- इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में जांच और कार्रवाई से मिल सकते हैं।
क्या आप मानते हैं कि बालिका गृहों की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र और सख्त तंत्र की जरूरत है? अपनी राय साझा करें।
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