Pakur Discovery: 140 मिलियन साल पुराना जीवाश्म मिला, वैज्ञानिक बोले – डायनासोर काल से भी पुराना रहस्य!
पाकुड़ जिले में वैज्ञानिकों ने 140 मिलियन साल पुराना जीवाश्म खोजा, जो डायनासोर काल से भी पुराना हो सकता है। प्रशासन इसे संरक्षित करने की योजना बना रहा है।
पाकुड़ : झारखंड के पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड में वैज्ञानिकों ने 120 से 140 मिलियन साल पुराना जीवाश्म खोज निकाला है। यह खोज भारत के भूगर्भीय इतिहास के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। इस जीवाश्म को राष्ट्रीय धरोहर मानते हुए जिला प्रशासन और वन विभाग इसे जियोलॉजिकल हेरिटेज साइट बनाने की योजना बना रहे हैं, जिससे इसे संरक्षित किया जा सके और आगे शोध किया जा सके।
कैसे हुई यह ऐतिहासिक खोज?
यह जीवाश्म लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान की टीम ने खोजा।
- वैज्ञानिक डॉ. सुरेश कुमार पिल्लई और पीएचडी छात्र विपिन मैथ्यू ने नवंबर 2024 में अमड़ापाड़ा के आलुबेड़ा और आमझारी गांव में सर्वेक्षण किया।
- बांसलोई नदी के किनारे पूरा पेड़ तने के साथ जीवाश्म के रूप में पाया गया, जो अब तक झारखंड में मिला सबसे बड़ा जीवाश्म है।
- इसके अलावा, कोयला उत्खनन क्षेत्र से 30 सेंटीमीटर लंबा एक जीवाश्म पत्ता मिला, जो अब तक का सबसे बड़ा जीवाश्म पत्ता होने का दावा किया जा रहा है।
क्या यह डायनासोर काल से पहले का जीवाश्म है?
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह जीवाश्म डायनासोर काल से भी पुराना है।
- डायनासोर 80 से 140 मिलियन साल पहले अस्तित्व में आए थे, लेकिन यह जीवाश्म 280 मिलियन साल पुराना है।
- वैज्ञानिकों ने इस पत्ते को ग्लोसोप्टेरिस फ्लोरा बताया, जो पर्मियन युग (280 मिलियन वर्ष पहले) के पौधों की विलुप्त प्रजाति थी।
- यह खोज गोंडवाना महाद्वीप (दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अंटार्कटिका) के बीच संबंधों को समझने में मदद कर सकती है।
28 मिलियन साल पुराना कोयला भंडार भी मिला!
अमड़ापाड़ा क्षेत्र में मौजूद कोयला खदान भी 28 मिलियन साल पुरानी बताई जा रही है।
- वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर यहां इतनी पुरानी वनस्पति संरचनाएं मिल रही हैं, तो भविष्य में डायनासोर से जुड़े जीवाश्म भी खोजे जा सकते हैं।
क्या होगा आगे?
- वन विभाग पाकुड़ जिले में एक फॉसिल्स म्यूजियम बनाने की योजना पर काम कर रहा है।
- जीवाश्म स्थल को "जियोलॉजिकल हेरिटेज साइट" घोषित करने के लिए प्रशासनिक प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
- वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर सही संरक्षण मिला, तो यह झारखंड में एक प्रमुख शोध केंद्र बन सकता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
- भू-वैज्ञानिक डॉ. एस.के. पिल्लई ने कहा कि यह खोज मानव सभ्यता और पृथ्वी के विकास को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
- डीएफओ सौरभ चंद्रा ने बताया कि यह झारखंड के लिए गर्व की बात है और इस स्थान को आने वाले दो वर्षों में संरक्षित किया जाएगा।
पाकुड़ जिले में मिली यह ऐतिहासिक खोज न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश के लिए भूगर्भीय अध्ययन का एक नया द्वार खोल सकती है। अगर इस क्षेत्र को संरक्षित किया गया, तो यह भविष्य में भारत का प्रमुख जियोलॉजिकल रिसर्च सेंटर बन सकता है।
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