ओह ! ये औरतें - प्रतिभा प्रसाद 'कुमकुम'

Aug 2, 2024 - 21:25
Aug 2, 2024 - 21:30
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ओह ! ये औरतें -  प्रतिभा प्रसाद 'कुमकुम'
ओह ! ये औरतें - प्रतिभा प्रसाद 'कुमकुम'

बात बहुत पुरानी नहीं है । यही लगभग दस साल पहले की । पापा की नौकरी लगने पर हम लोग बिहार के शहर में आकर रहने लगे । मेरे दादी जी , मैं और मेरी बहन । हम लोग अभी प्राइमरी स्कूल में ही थे । मेरे पड़ोस में एक कुलीन परिवार रहता था । वह उनका अपना घर था और हम लोग किराए के घर में थे । उनके चार बच्चे थे । हम दोनों के घर के सामने अच्छा बड़ा लॉन था । हमें जब  फुरसत मिलती एक दूसरे के घर जाकर खेलते थे । कभी इनडोर गेम्स कभी आउटडोर गेम्स । बहुत आनंद आता था । राहुल और रंजना को हमेशा लगता था कि यदि वे भी चार भाई बहन होते तो राजीव केशव के बहनों के साथ मिलकर एक अच्छी टीम बन जाती । लेकिन यह सच नहीं हो सकता था । सिर्फ कल्पना कर मुस्कुराया जा सकता था । दोनों के पापा बैंक में कार्यरत थे और दोनों को दस बजे ऑफिस जाना होता था । 

          पापा शाम को आते समय घर के जरुरतों का सामान ले आया करते थे और राजीव के पापा भी घर वापसी पर वही करते थे । बच्चे बड़े हो रहे थे और घर खर्ची बढ़ने लगा था । अब कोई सामान लाने बोलो तो तकरार हो जाती । दादी को यह सब देखकर बुरा लगता था । लेकिन दादाजी को गुजरे दस वर्ष हो गए थे । सो दादी दादा जी को याद कर सुबकने लगती । राजीव के घर भी वही हाल था । लेकिन राजीव के दादा जी बाजार जा नहीं सकते थे । उन्हें चलने में तकलीफ थी और फिर उन्हें भारी सामान उठाना भी मना था । दोनों दादी जब भी मिलती खुसुर -फुसुर चलती रहती । राजीव की माँ और मेरी माँ भी घन्टों बतिआया करतीं । हम सभी बच्चे अपना सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिए और बढ़ती उम्र में सब कुछ जान लेने की उत्कंठा में सभी बच्चे खाली वक्त में सभी पर नजर रखते । मानों जासूसी कर रहें हों । पता नहीं क्या पता चल जाए और मम्मी को ब्लैक मेल कर अपनी बातें मनवा ली जाए । दो चार बार हमारे हाथ बड़ी जीत लग भी गई थी । सो उत्साह में कमी नहीं थी । माँ से हलवा बनवाना और चॉकलेट लेना तो आम बात थी ।

               अचानक कुछ ऐसा हुआ कि हम लोगों के समझ में कुछ नहीं आया और तकरीबन सात आठ महीने से घर में होने वाला कलह शान्त पड़ गया था । शुरू- शुरू में बहुत अच्छा भी लगा और मजा भी आया । लेकिन जब यह लम्बा चलने लगा तो तब कुछ खटकने सा लगा । लगने लगा कि कुछ पर्दे के पीछे घट रहा है लेकिन हम बच्चे इस सबसे अनजान हैं । सब कुछ हम लोग के नाक के नीचे हो रहा है और हमको दिखाई नहीं दे रहा है । 

             घर की शान्ति तो अच्छी लग रही थी लेकिन गॉशिप केलिए मसाला मिल नहीं रहा था । करने केलिए कोई काम ही नहीं बचा था । मम्मी पापा में बीच बचाव हमीं तो किया करते थे और अपने बुद्धिमत्ता पर खूब गर्व भी होता था उपर से दादी माँ का दूलार लाड़ और अच्छे बच्चे होने का खिताब अलग से मिलता था । सब बन्द था । बस पढ़ाई करो खेलो और सो जाओ । समाज से जुड़ना , समाजीकरण होना मेरा मन इस अभाव से कुलबुलाने लगा । सब कुछ निष्क्रिय सा हो गया था घर परिवार। अब घर में हमारी किलकारी नहीं हंसी ठहाके नहीं बस खामोशियाँ तैर रहीं थीं । 

            एक दिन लॉन में हम बच्चों ने बैठकर एक प्लान बनाया । अपने -अपने अंदर बैठे जासूस को जिंदा किया । हमारी राय ये बनीं की इस खामोशी के कारण को ढ़ूढ़ा जाए । लड़ाई नहीं होना अच्छी बात है । घर में शान्ति हो तो और भी अच्छा लगता है लेकिन इससे बच्चों की क्रिएटिविटी पर भी असर पड़ता है भाई । तेरह चौदह साल से जिस माहौल में बड़ा हुआ हूँ वो अचानक बदल कैसे गया ? यह जानने का हक तो हमें भी है ही साथ ही इसका कारण पता चल जाए तो यह और भी  ज्यादा जरूरी लग रहा है ।  कहीं कोई मम्मी पापा को धमका तो नहीं रहा है । कहीं यह तुफान के पहले की शान्ति तो नहीं । 

         नहीं नहीं हमें इस मामले की तह तक जाना ही होगा । बस हम सब अपने अपने मोर्चे पर तैयार हो गए । पहले हफ्ते पूरे घर की जासूसी जरूरी है । कुछ तो क्लू मिलेगा । और हमें जल्दी ही बहुत कुछ मिल भी गया । 

       राहुल और राजीव ने मिलकर यह तय किया था कि अपने -अपने घर का विडियो बनाकर शेयर करेंगे । और इस पर अमल भी करने लगे । पहले दिन दोनों के पापा ऑफिस से आकर फ्रेश होकर नाश्ता चाय कर शाम को टहलने निकल गए । दोनों की मम्मी ने ऑफिस से लौटते वक्त सामान न लाने पर कोई जिरह नहीं किया । जब दोनों के पापा शाम को बिना कुछ बोले टहलने चले गए और माँ खामोश रहीं तो बड़ा अटपटा सा लगा । लेकिन वो खुद भी बाजार नहीं गई । यह सिलसिला पूरे हफ्ते चला । फिर दोनों घर के गृहस्थी का सामान ला कौन रहा है ? अजीब चक्कर था । घर में वही खामोशी थी । एक नए प्रश्न का नया अध्याय शुरू हो चुका था । बस हमें ढ़ूढ़ना था ।

    ‌‌        हम लोगों ने हार नहीं मानी थी । अब फिर से सभी संबंधों पर नजर रखना शुरू कर दिया । लेकिन कोई क्लू नहीं मिल रहा था । केशव ने माँ से जाकर पूछा माँ बाजार से कुछ सामान लाना है क्या ? पापा तो टहलने चले गए हैं । माँ चौंकते हुए । अच्छा अब तो तुम बड़े हो गए हो । ठीक है । कुछ मंगाना होगा तो बोल दूंगी ।‌ अच्छा माँ पापा तो आजकल बाजार नहीं करते तो फिर तुम बाजार क्या दोपहर में चली जाती हो क्योंकि जब शाम को हम सब स्कूल से लौटते हैं तो आप घर पर काम कर रही होती हो । माँ मुस्कुराईं ।‌ अरे नहीं बेटा । सामान तो पापा ही लातें हैं लेकिन तुम्हारे पापा नहीं राहुल के पापा ला देतें हैं । अच्छा वो दोनों घर का सामना अकेले ले आते हैं और आँटी कुछ नहीं कहती है । माँ बोलीं ---अरे मेरा भोलेनाथ , तुम नहीं समझोगे । मैं सब समझता हूँ । बताओ ना प्लीज । माँ आज अच्छे मूड में थी । बोली तेरे पापा राहुल के घर का सामान ले आते हैं । अच्छा माँ ये अदला बदली क्यों ? यह तो तू अपनी दादी अम्मा से पूछ । उन्होंने ही कुछ चक्कर चलाया है । सात आठ माह से सत्ता उन्हीं के हाथ में है । रोज - रोज के किच किच से तंग आकर मैं ने भी चैन की सांस ली है । कुछ समय निकालकर बच्चों का होमवर्क करवा देते हैं । कुछ अगला पाठ पढ़ा देती हूँ । देखा इस बार सबके नंबर कितने अच्छे आंए हैं । बहुत बात हो गई । केशव तुम्हें कुछ चाहिए क्या ? केशव -- नहीं माँ मैं पानी पीने आया था । केशव उछलता कूदता रसोई से बाहर चला गया । 

             बच्चों की मीटिंग चल रही थी । केशव कुछ पता लगाकर आए हों । हाँ ! पूरी समस्या का समाधान ही निकाल कर लें आया हूँ । राजीव -- अच्छा बता बता । क्या बताएं भैया । माँ और दादी माँ ने तो पक्की योजना बनाई है । हालांकि माँ इस बात से इन्कार करतीं हैं लेकिन मुझे लगता है यह आइडिया माँ का ही होगा । वरना दादी माँ को तो यह आइडिया आ ही नहीं सकता है । 

        अरे केशव टाइम पास मत कर । पहले मूल बात बता ।  माजरा क्या है ? अरे कुछ नहीं भाई । अरे ये दादी माँ न हम सबकी दादी हैं दादी । धत् तेरे की राहुल ने फूल फेंक कर मारा । अबे बता जल्दी । 
केशव - हँसते हुए , अच्छा - हाँ । यह सब न दादी माँ का ही किया धरा है । अबे केशव फिर वही बात । मूल मुद्दे पर आ जाओ भाई । कितनी परीक्षा लेगा । ओह ! केशव प्लीज भाई । केशव , ओह ! हाँ । दोनों दादी ने न दोनों पापाओं की कामों की अदला बदली कर दी है । अब कोई कैसा भी सामान लाए । सस्ता महंगा , अच्छा खराब । कोई कैसे कुछ भी कहें । इसीलिए सब की बोलती बंद है । ठहाके के साथ । सभी बच्चों  एक साथ बोल पड़े खोदा पहाड़ निकली चुहिया ।


लेखिका 
प्रतिभा प्रसाद 'कुमकुम'

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।