लघुकथा: व्यवसाय - डॉ ऋतु अग्रवाल जी, मेरठ, उत्तर प्रदेश
लघुकथा: व्यवसाय - डॉ ऋतु अग्रवाल जी, मेरठ, उत्तर प्रदेश | Short story: Business - Dr. Ritu Agarwal Ji, Uttar Pradesh
लघुकथा: व्यवसाय
ट्रेन में समोसे वाला अपनी खाली ट्रे के साथ बैठा था। ट्रेन इस स्टेशन पर आधा घंटा रुकने वाली थी। समोसे वाला ट्रेन में चलते पंखे के नीचे बैठ सुस्ताने लगा।
"कहाँ के रहने वाले हो भाई?" समय काटने के उद्देश्य से मैंने पूछ लिया।
"जी! पटना से।" वह बोला। उसके बात करने के अंदाज़ से ही मैं समझ गई कि पढ़ा-लिखा है वह।
"पढ़े- लिखे लगते हो? फिर यह फेरी क्यों लगाते हो? कोई नौकरी नहीं मिली क्या?" मैंने पूछा।
"फेरी मैडम यह व्यवसाय है मेरा।" वह तुनक गया।
"व्यवसाय! मेरी हल्की सी हँसी छूट गई, "वह कैसे?"
"मैडम! मैं प्रतिदिन कम से कम ढाई से तीन हजार समोसे ट्रेन में यात्रियों को बेच देता हूँ। हलवाई से समोसे खरीदने पर मुझे फ़ी समोसा एक रुपए की बचत हो जाती है, मतलब महीने के तकरीबन अस्सी हजार रुपए। न जीएसटी, न , न बॉस की फटकार, न चमचागिरी। जितनी मर्जी हो उतना काम करता हूँ। है न फ़ायदे का व्यवसाय और सबसे बड़ी बात नौकरी से निकाले जाने का डर भी नहीं।" उसने कहा तो मैंने अपने गले में लटके कंपनी के आई कार्ड को कसकर थाम लिया।
स्वरचित ✍️
डॉ ऋतु अग्रवाल जी
मेरठ, उत्तर प्रदेश
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