Jharkhand Recruitment Controversy : हाईकोर्ट ने संविदा डॉक्टरों की नियुक्ति पर रोक लगाई
झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य के मेडिकल कॉलेजों में संविदा डॉक्टरों की भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाई है। सरकार और जेपीएससी से पूछा गया, "नियमित पदों पर संविदा क्यों?" पूरी खबर पढ़ें।
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Jharkhand में डॉक्टरों की संविदा नियुक्ति को लेकर शुरू हुआ विवाद अब एक बड़े मोड़ पर पहुंच चुका है। झारखंड हाईकोर्ट ने मेडिकल कॉलेजों में संविदा पर डॉक्टरों की भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार और झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) से जवाब तलब किया है। अदालत ने संविदा नियुक्ति के पीछे सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल उठाए हैं और प्रक्रिया की वैधता पर ध्यान केंद्रित किया है।
क्या है मामला?
राज्य के पांच प्रमुख मेडिकल कॉलेजों, जिनमें एमजीएम मेडिकल कॉलेज और अस्पताल भी शामिल है, में डॉक्टरों की भारी कमी को देखते हुए स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा और परिवार कल्याण विभाग ने संविदा आधारित भर्ती की प्रक्रिया शुरू की थी। 170 रिक्त पदों को भरने के लिए वॉक-इन-इंटरव्यू के माध्यम से उम्मीदवारों का चयन किया जा रहा था।
चयनित डॉक्टरों को विभिन्न विभागों जैसे एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, फार्माकोलॉजी, शिशु रोग, स्त्री एवं प्रसूति, और मनोरोग में तैनात करने की योजना बनाई गई थी। इन संविदा पदों पर ₹1,50,000 मासिक मानदेय निर्धारित किया गया था, और कार्यकाल अधिकतम दो वर्षों के लिए या स्थायी नियुक्ति तक सीमित था।
याचिका का आधार
इस प्रक्रिया के खिलाफ असीम शकील नामक व्यक्ति ने याचिका दायर की। उन्होंने अदालत में दावा किया कि जो पद नियमित नियुक्ति के लिए निर्धारित हैं, उन पर संविदा नियुक्ति नियमों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि सरकार ने साक्षात्कार प्रक्रिया शुरू कर दी थी, लेकिन यह संविदा प्रक्रिया नियमित नियुक्ति की जगह नहीं ले सकती।
हाईकोर्ट का रुख
मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति दीपक रोशन की पीठ ने सरकार और जेपीएससी से स्पष्ट करने को कहा कि जब ये पद नियमित नियुक्तियों के लिए हैं, तो संविदा पर भर्ती क्यों की जा रही है। अदालत ने कहा कि इस प्रक्रिया से न केवल नियमों का उल्लंघन होता है, बल्कि यह योग्य उम्मीदवारों के साथ भी अन्याय है।
अदालत ने सरकार से यह भी पूछा कि नियमित भर्ती प्रक्रिया शुरू करने में देरी क्यों हो रही है। अदालत ने संविदा भर्ती प्रक्रिया पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाते हुए मामले की अगली सुनवाई जनवरी में निर्धारित की है।
इतिहास से सीख
झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव कोई नई बात नहीं है। वर्षों से, राज्य में डॉक्टरों की कमी और अस्पतालों की खराब स्थिति एक बड़ी चुनौती रही है। संविदा आधारित नियुक्तियां पहले भी विवाद का विषय बनी हैं। इस बार मामला इसलिए अधिक संवेदनशील है क्योंकि यह उच्च शिक्षण संस्थानों और मेडिकल कॉलेजों से जुड़ा हुआ है, जहां डॉक्टरों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है।
संविदा बनाम नियमित नियुक्ति
संविदा आधारित नियुक्तियां अस्थायी समाधान हो सकती हैं, लेकिन यह प्रक्रिया स्थिरता और दीर्घकालिक सुधार की राह में बाधा बनती है। नियमित नियुक्तियां न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करती हैं, बल्कि योग्य उम्मीदवारों को भी एक स्थिर और सुरक्षित करियर प्रदान करती हैं।
अगले कदम
अब, सरकार और जेपीएससी पर अदालत के सवालों का जवाब देने की जिम्मेदारी है। यह देखना होगा कि वे इस मामले में क्या रुख अपनाते हैं और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए किस तरह के कदम उठाते हैं।
झारखंड हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की वर्तमान स्थिति को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि पारदर्शिता और जवाबदेही के बिना ऐसी प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाना संभव नहीं है।
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